प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। देश में 18-19 आयु वर्ग के मतदाताओं की आबादी लगभग 4.9 करोड़ है, पर इनमें से 38 प्रतिशत ने ही र खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराया है, युवाओं की भागीदारी क्यों घट रही है ?
‘मेरा पहला वोट देश के लिए’
इसी साल फरवरी के अंतिम रविवार को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 110वें संस्करण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 साल की उम्र पूरी करने पर नए बने मतदाताओं से यह आह्वान किया था कि वे 18वीं लोकसभा चुनने के लिए बड़ी संख्या में मतदान करें। प्रधानमंत्री ने चुनाव आयोग के अभियान ‘मेरा पहला वोट देश के लिए’ की भी प्रशंसा की थी, पर हाल ही में 18 वर्ष के होने वाले युवाओं पर इस सबका ज्यादा असर नजर नहीं आता। 18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में मतदान हो रहा है। 19 अप्रैल को मतदान के पहले चरण से कुछ ही दिन पहले यह आंकड़ा आया कि देश भर में 18-19 आयु वर्ग के युवाओं के मतदाता बनने का प्रतिशत 40 से भी कम है।
मतदाता बनने के प्रति उदासीनता के आंकड़े!
देश में इस आयु वर्ग के मतदाताओं की अनुमानित आबादी 4.9 करोड़ है, पर 1.8 करोड़, यानी 38 प्रतिशत ने ही खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराया है। यह आंकड़ा वर्ष 2014 में खुद को मतदाता के रूप में पंजीकृत कराने वाले इसी आयु वर्ग के नौजवानों से 1.9 प्रतिशत कम है। राजनीतिक दल भी इससे इनकार तो नहीं करते कि युवा ही वास्तव में किसी देश का भविष्य होते हैं। तब क्या भारत के युवाओं में मतदाता बनने के प्रति ही ऐसी उदासीनता को गंभीर संकेत नहीं माना जाना चाहिए ? मतदान तो अगला कदम है। मतदाता बनने के प्रति उदासीनता के राज्यवार आंकड़े भी सवाल खड़े करते हैं। मसलन, देश का दिल कही जाने वाली दिल्ली में 18 से 19 आयु वर्ग के युवाओं के मतदाता बनने का प्रतिशत मात्र 21 है।
आतंकवाद और अलगाववाद झेल रहा जम्मू-कश्मीर
राजनीतिक रूप से सजग और सक्रिय माने जाने वाले बिहार में तो यह 17 प्रतिशत पर ही अटक गया। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भी इस आयु वर्ग के 23 प्रतिशत युवाओं ने ही मतदाता बनने में दिलचस्पी दिखाई। अपेक्षाकृत नए राज्य तेलंगाना के आंकड़े अवश्य उत्साहवर्द्धक हैं, जहां इसी आयु वर्ग के 66.7 प्रतिशत युवाओं ने मतदाता के रूप में खुद को पंजीकृत कराया है। अरसे से आतंकवाद और अलगाववाद झेल रहा जम्मू-कश्मीर भी इस मामले में प्रशंसा का पात्र है, जहां 62 प्रतिशत नौजवानों ने मतदाता बनने में दिलचस्पी दिखाई है। हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल में यह प्रतिशत क्रमशः 60, 49, 48 और 38 रहा। जाहिर है, कम मतदाता बनने का सीधा असर चुनाव प्रक्रिया के जरिये युवाओं की भागीदारी पर भी पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव में भी युवा पीछे नहीं!
चुनाव प्रक्रिया में युवाओं की घटती दिलचस्पी के जो कारण जानकार बताते हैं, वे दरअसल हमारी राजनीति को ही कठघरे में खड़ा करने वाले हैं। मसलन, उम्रदराज राजनीतिक नेतृत्व में युवाओं को अपना प्रतिनिधित्व और अपनी आकांक्षाओं का प्रतिबिंब नहीं दिखता। चुनाव प्रक्रिया में युवाओं की घटती दिलचस्पी तब और भी चौंकाने वाली है, जब देखें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में युवाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान किया था। एक आंकड़े के मुताबिक, 2014 के लोकसभा चुनाव में 18 से 25 आयु वर्ग के युवाओं ने शेष आबादी की तुलना में कहीं ज्यादा 70 प्रतिशत तक मतदान किया था।
चुनाव से मोहभंग क्यों नजर आ रहा है?
चुनाव प्रक्रिया पर नजर रखनेवाले मानते हैं कि तब भाजपा की जीत में भी निर्णायक भूमिका युवाओं ने ही निभाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी युवा पीछे नहीं रहे। फिर अब युवाओं का चुनाव प्रक्रिया से मोहभंग क्यों नजर आ रहा है? वास्तविक कारण तो युवाओं के बीच किसी व्यापक सर्वेक्षण से ही पता चल सकता है, पर देश-काल-परिवेश के मद्देनजर उसका अनुमान लगाने की कोशिश की जा सकती है। तत्कालीन सरकार पर भ्रष्टाचार और नीतिगत जड़ता के गंभीर आरोपों के बीच हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर नौकरियां देने का वायदा किया गया था, पर आज भी लाखों सरकारी पद खाली पड़े हैं।
युवाओं की चिंता क्या है?
युवाओं के वोट की चाह रखने वाली हर पार्टी को यह भी दिखना चाहिए कि युवाओं की चिंता क्या है? अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि कुल मिलाकर 83 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। आयु वर्ग की बात करें, तो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के आवधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) के आकड़े बताते है कि जुलाई, 2022 से जून, 2023 के बीच नौकरी तलाश कर रहे 17 साल के युवाओं का प्रतिशत 16.8. 18 साल के युवाओं का प्रतिशत 28.5 और 19 साल के युवाओं का प्रतिशत 31.3 था।
युवाओं की चुनाव प्रक्रिया से दूरी चौंकाती!
इसी सर्वेक्षण के मुताबिक, पहली बार मतदान करने वालों की श्रम बल भागीदारी 29.7 प्रतिशत थी, यानी उनमें से 70 प्रतिशत के पास कोई रोजगार नहीं था। ऐसे में, युवाओं की चुनाव प्रक्रिया से कुछ दूरी बहुत चौंकाती तो नहीं, पर सवाल अवश्य खड़े करती है। पिछले कई सालों से भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है। भारत की जनसंख्या 144 करोड़ हो जाने पर आई संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की रिपोर्ट बताती है कि रोजगार की दृष्टि से युवा यानी 18 से 35 वर्ष के बीच की आबादी की बात करें, तो उसका आंकड़ा 60 करोड़ के आसपास बैठता है। दिल्ली में तो 45 प्रतिशत मतदाता 40 साल से कम उम्र के हैं।
आर्थिक उदारीकरण के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज विकास दर की कहानी खुद आंकड़े बयान करते हैं। भारत का विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाना निश्चय ही गर्व की बात है। ऐसा कदापि नहीं कहा जा सकता कि हमारे राजनीतिक दल युवा मतदाताओं का महत्व नहीं समझते हैं। कमोबेश सभी राजनीतिक दलों के विभिन्न नामों से जारी चुनाव घोषणापत्रों में युवाओं के लिए लुभावनी घोषणाएं हैं।
युवाओं में मतदान के प्रति दिलचस्पी !
फिर भी, युवाओं में मतदान के प्रति दिलचस्पी घट रही है, तो सभी दलों को सोचना होगा। बेशक यह स्थिति राजनीतिक नेतृत्व से भी आत्म-विश्लेषण की मांग करती है, लेकिन देश सिर्फ राजनीतिक दलों- नेताओं का नहीं है। देश की सही दिशा के लिए जरूरी है कि दलों-नेताओं की दिशा भी सही रखी जाए। हालात मोहभंग से नहीं, मनोबल से ही बदले जा सकते हैं। मतदान अधिकार ही नहीं, हर नागरिक का कर्तव्य भी है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के लिए ही कहा था: उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए।