पृथ्वी का की त्रिज्या करीब 6300 किलोमीटर से कुछ अधिक है. यानि पृथ्वी के केंद्र की उसकी सतह से लगभग इतनी ही दूरी है. वहीं उसकी ऊपरी परत औसतन 30 किलोमीटर है लेकिन यह मोटाई विविधता भरी है और 5 किलोमीटर से 30 किलोमीटर तक हो सकती है. खुद पृथ्वी की सतह के सर्वोच्च बिंदु और गहरे समुद्र के सबसे निचले बिंदु की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है. ऐसे में पृथ्वी के भीतर गड्ढा खोदना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. अब चीन ने अपने उत्तर पश्चिम स्थित जिनझियांग प्रांत के तरीम बेसिन में एक किलोमीटर गहरा गड्ढा खोदने का काम शुरू किया है.
क्या है मकसद
चीनी एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार मंगलवार के शुरू हुई इस खुदाई में एक संकरे शाफ्ट से करीब 11,100 मीटर तक पथरीले इलाके वाले महाद्वीप परत में खुदाई की जाएगी जिसमें 14 करोड़ साल पुराने तक क्रिटेशियस काल के जीवाश्म मौजूद हैं. लेकिन चीन का मकसद पृथ्वी के आंतरिक हिस्से का अध्ययन करना बताया जा रहा है.
विज्ञान में तेजी से आगे बढ़ रहा है चीन
चीन विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है. अंतरिक्ष के क्षेत्र में तो उसने कई बेहतरीन मुकाम हासिल किए ही हैं, लेकिन कम लोग जानते हैं की वह विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. इनमें वह जीवाश्म विज्ञान में भी काफी तरक्की की है. चीनी वैज्ञानिकों ने अपन देश में अभूतपूर्व संख्याओं में जीवाश्म हासिल कर बहुत सारे डायनासोर के जीवाश्म की जानकारी दुनिया को दी है.
चीन में पहली बार इस तरह का छेद
इस अभियान का मकसद पृथ्वी की ऊपरी और आंतरिक परतों का अध्ययन करना है. इस बोरवेल के लिए 11100 मीटर की खुदाई की जाएगी.यह चीन में इस किया जा रहा इस तरह का पहला सबसे गहरा गड्ढा होगा. तरीम बेसिन चीन के जिंगजियांग इलाके में जो चीन के उइगर मुसलमानों की वजह से सुर्खियों में रहा करता है. लेकिन यह इलाका जमीन के नीचे तेल के भंडार के लिए भी मशहूर है.
और भी मिलेगी जानकारी
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अध्ययन के अलावा चीन इस इलाके की गहराई में दबे पृथ्वी के इतिहास के प्रमाण भी हासिल करने का प्रयास करेगा. इसमें पृथ्वी के भूभाग की विकास की जानकारी, जलवायु परिवर्तन का इतिहास, विभिन्न कालखंडों में जीवन का वितरण जैसी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने की कोशिश होगी. महाद्वीपीय भूभाग में चट्टानों की परतें पृथ्वी के इतिहास का को समझने के लिए बहुत ही उम्दा संसाधन होती हैं.
एक साहसिक कदम
महाद्वीपीय भूभाग में चट्टानों की परतें पृथ्वी के इतिहास का को समझने के लिए बहुत ही उम्दा संसाधन होती हैं. इनसे पृथ्वी की सतह और उसके कुछ ही नीचे पर हुई, ज्वालामुखी विस्फोट, भूकंप, और जलवायु परिवर्तन जैसी प्रमुख घटनाओं की पता चलता है. इनके जरिए पुरातन जीवन की अहम जानकारियां भी मिलती हैं. इस अभियान के तकनीक विशेषज्ञ वांग चेनशेंग का कहना हैति यह पृथ्वी के अज्ञात हिस्से के अन्वेषण करने वाला एक साहसिक कदम है.
चीन ने नहीं बताया है क्यों
रोचक बात यह है कि चीन ने खुद इस बात का आधिकारिक कारण नहीं बताया है कि वह इस खुदाई को क्यों कर रहा है. वैसे भी यह बोरहोल करना आसान काम नहीं है. इसके लिए बहुत ही उन्नत किस्म के आधुनिक उपकरणों की जररूत होगी. ऊपर से खुदाई की जगह चीन के सबसे बड़े रेगिस्तान तिकलिमाकन रेगिस्तान के बीच है, जहां काम करना बहुत ही मुश्किल होता है.
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह छेद दुनिया का सबसे गहरा मानव निर्मित छेद होगा. इससे पहले 1970 से 1992 के बीच सोवियत संग ने रूस के कोला प्रायद्वीप में कोला सुपरडीप बोरहोल नाम का गड्ढा किया था. 12262 मीटर गहरा यह गड्ढा आज भी दुनिया का सबसे गहरा मानव निर्मित गड्ढा है. इस गड्ढे को भी करने का मकसद पृथ्वी की पर्पटी और उसकी दूसरी परत मेंटल का अध्ययन करना था. यहां तापमान 180 डिग्री तक देखने को मिला था और खुदाई के दौरान उपकरण बार बार टूटे थे.