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क्यों ‘उड़ता ताबूत’ बना मिग-21?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
08/05/23
in मुख्य खबर, राष्ट्रीय
क्यों ‘उड़ता ताबूत’ बना मिग-21?
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नई दिल्ली : मिग-21 लड़ाकू जहाज, जिन्हें साठ के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) से खरीदा गया था। रूस इस फाइटर प्लेन को 1985 में रिटायर कर चुका है, लेकिन भारतीय सेना में आज भी इन जहाजों का इस्तेमाल हो रहा है। इस जहाज की खासियत रही है कि यह कभी धोखा नहीं देता, बशर्ते इसे पूरी सावधानी एवं सूझबूझ के साथ उड़ाया जाए। 1971 की लड़ाई में इस सुपरसोनिक जहाज की मार से दुश्मन कांप उठा था। ढाका के गवर्नर हाउस पर मिग-21 ने ही अटैक किया था। इसके अलावा पाकिस्तान के साथ 1965 और 1999 की लड़ाई में भी इस लड़ाकू जहाज खुद को साबित कर दिखाया था। अब इस जहाज के क्रैश होने की घटनाएं इतनी ज्यादा हो चली हैं कि इसे ‘उड़ता ताबूत’ और ‘विधवा बनाने वाला’ तक कहा जाने लगा है। हालांकि इसका अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, लेकिन अगले दो तीन साल में इसे पूरी तरह से रिटायर कर दिया जाएगा।

पिछले साल मिग-21 क्रैश में हुए थे दो पायलट शहीद

गत वर्ष भी जुलाई में राजस्थान के बाड़मेर में रात को मिग-21 क्रैश हो गया था। उस घटना में भारतीय वायुसेना के दो पायलट शहीद हुए थे। मिग-21 को ऑपरेशनली हैंडल कर चुके एयर कमोडोर बीएस सिवाच (रिटायर्ड) ने तब कहा था, रूस इस फाइटर प्लेन को 1985 में रिटायर कर चुका है, जबकि भारत में आज तक इन विमानों का इस्तेमाल हो रहा है। मिग-21 की सबसे बड़ी खासियत है कि ये गलती माफ नहीं करता। इसे किसी भी तरह से उड़ा लेंगे, ये बहुत बड़ी गलतफहमी है। अगर मिग-21 का सूझबूझ से इस्तेमाल किया जाता है, तो ये कभी धोखा नहीं देता। 1971 की लड़ाई में मिग-21 ने शानदार नतीजे दिए थे। ग्राउंड अटैक में इसका बेहतरीन इस्तेमाल किया गया।

अधिकांश देश मिग-21 से किनारा कर चुके हैं

दुनिया के अधिकांश देश मिग-21 से किनारा कर चुके हैं। भारत में अभी तक ये जहाज संचालन में हैं। एयर कमोडोर बीएस सिवाच (रिटायर्ड) ने कहा, मिग-21 को उड़ाने के लिए बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इसका प्रशिक्षण बहुत कठोर होता है। इसे हल्के में तो लिया ही नहीं जा सकता। अगर सूझबूझ से इस्तेमाल करेंगे तो ये कभी धोखा नहीं देगा। ‘जंगी कार्रवाई तैयारी प्लेटफार्म’ में इसका जमकर प्रयोग किया गया है। दूसरे उच्च श्रेणी वाले लड़ाकू जहाजों को उड़ाने से पहले पायलटों को सुपरसोनिक मिग-21 पर ही प्रशिक्षित किया जाता है। इस लड़ाकू जहाज की लैंडिंग स्पीड ही 300 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है। आसमान में इसकी रफ्तार का अंदाजा लगाया जा सकता है।

पौने दो सौ करोड़ रुपये में खरीदा गया था ये विमान

लगभग पौन दो सौ करोड़ रुपये की कीमत वाले मिग-21 को रूस से खरीदा गया था। 1963 में इसे औपचारिक तौर पर वायुसेना के बेड़े में शामिल किया गया। भारत सरकार ने 874 मिग-21 खरीदे थे। दुनिया के करीब साठ देशों ने अपने लड़ाकू जहाजों के बेड़े में ‘मिग-21’ सुपरसोनिक को शामिल किया था। अब अधिकांश देश, इस जहाज को स्थायी तौर से विश्राम दे चुके हैं। भारत ने इसे अभी तक चलाए रखा है। वजह, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इस विमान को कुछ हद तक अपग्रेड कर दिया। बीएस सिवाच बताते हैं, 60 साल से ट्रेनिंग और लड़ाई में इस जहाज का कोई मुकाबला नहीं था। अब स्पेयर पार्ट्स का बैकअप ठीक से नहीं मिल रहा। चूंकि रूस ने इसका निर्माण बंद कर दिया है, तो ऐसे में स्पेयर पार्ट्स का संकट आ गया। पहले वाले पुर्जों से ही काम चल रहा है। एयर फ्रेम को अपग्रेड नहीं कर सकते हैं, इसकी एक सीमा भी होती है। ऐसे में पुरानी मशीन को रिटायर कर देना चाहिए। मिग-21 को अब इसकी समय सीमा से ज्यादा उड़ाया जा चुका है। 1990 के दशक में इसे रिटायर हो जाना चाहिए था।

राष्ट्र की सुरक्षा में खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा

जानकारों के मुताबिक, वायुसेना को मिग-21 का विकल्प मिल जाता तो इसे रिटायर किया जा सकता था। नौ साल पहले भारतीय वायुसेना प्रमुख रहे अरूप राहा ने इस लड़ाकू विमान के बारे में अहम बात कही थी। उन्होंने कहा, इस तरह के पुराने लड़ाकू जहाजों को हटाने में भारत जितनी देर करेगा, राष्ट्र की सुरक्षा में खतरा उतना ही बढ़ता जाएगा। उनसे पहले भी कई एयरचीफ कहते रहे कि मिग-21 को अब विश्राम देना चाहिए, लेकिन सरकार ने विकल्प न होने के चलते इस जहाज का इस्तेमाल जारी रखा। मिग-21 के कुछ विमानों के अलावा मिग-25 और मिग-27 जैसे लड़ाकू जहाज रिटायर भी हुए हैं। ‘तेजस’ पर काम चल रहा है। दो तीन साल में जैसे ही तेजस के पर्याप्त स्क्वाड्रन इस्तेमाल में आएंगे, तो मिग-21 को रिटायर कर दिया जाएगा। अभी तक 400 से अधिक मिग लड़ाकू जहाज, क्रैश हो चुके हैं। इन हादसों में वायुसेना के 200 से अधिक पायलट शहीद हो गए हैं। इसके अलावा ढाई सौ से ज्यादा सामान्य लोगों ने भी इन हादसों में अपनी जान गंवाई है।

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