नए साल की शुरुआत में बिहार में बड़ा राजनीतिक मंथन हो सकता है. खबर आ रही है कि मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना पद अपने डिप्टी तेजस्वी यादव को सौंपने के लिए मजबूर किया जा सकता है. बिहार से आने वाली रिपोर्टों से पता चलता है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के अगले साल मार्च के आसपास भारत लौटने पर यह प्रक्रिया तेज हो सकती है. 5 दिसंबर को किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद से लालू यादव सिंगापुर के अस्पताल में भर्ती हैं.
नीतीश कुमार ने खुद हाल ही में अप्रत्यक्ष रूप से अपने पद से हटने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगा.
फिर, वह अभी क्यों पद छोड़ें?
इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि एक बार जब लालू प्रसाद स्वास्थ होकर वापस आ गए तब वह अपने छात्र जीवन के करीबी दोस्त नीतीश कुमार से अपने बेटे तेजस्वी को तुरंत बिहार का शासन सौंपने और उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में जाने के लिए कह सकते हैं.नीतीश ने सितंबर में अपनी नई दिल्ली यात्रा के दौरान इस प्रक्रिया की शुरुआत कर दी है जब उन्होंने कई विपक्षी नेताओं से मुलाकात की.
क्या है नीतीश की मूल योजना?
नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं और उन्हें लगता है कि 2024 के संसदीय चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए वह किसी भी दूसरे नेता की तुलना में अधिक स्वीकार्य होंगे. उन्होंने 2025 में अगले बिहार विधानसभा चुनाव होने तक मुख्यमंत्री के रूप में बने रहने की योजना बनाई और अपने प्रधानमंत्री के सपने को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा बनाया.
हालांकि, उनकी घटती लोकप्रियता ने इस भावना को तेजी से जन्म दिया है कि तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपना ही बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन (महागठबंधन) को 2025 में सत्ता में बनाए रखने का एकमात्र तरीका हो सकता है.
क्या नीतीश पर भरोसा किया जा सकता है?
नीतीश अविश्वसनीय हैं और बिहार के बिन पेंदी का लोटा माने जाते हैं. वह अब तक तीन बार पाला बदल कर लोकप्रिय जनादेश के विरुद्ध गए हैं. इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह चौथी बार ऐसा नहीं करें.वह भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा थे और उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन में 2020 का बिहार चुनाव लड़ा.
हालांकि, उन्होंने इस साल अगस्त में अपने पुराने मित्र लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाकर गठबंधन तोड़ दिया और आरजेडी के साथ सरकार बना ली.ऐसी खबरें थीं कि आरजेडी के साथ नीतीश बेचैनी फील कर रहे हैं और एक बार फिर से पाला बदल सकते हैं. ऐसे में आरजेडी भी कड़ा रुख अपना सकती है.
नीतीश अलोकप्रिय क्यों हो गए?
भाजपा से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक भाग्य को तगड़ा झटका लगा और उनकी लोकप्रियता काफी गिर गई है. तब से, महागठबंधन तीन विधानसभा उपचुनावों में से दो में भाजपा से हार चुका है.राज्य में जहरीली शराब से होने वाली मौत की लगातार और बढ़ती घटनाओं और बिहार में बुरी तरह से फेल शराबबंदी लागू करने के उनके 2015 के फैसले पर अड़े रहने के कारण भी उन्हें जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है.
नीतीश बुरी तरह से घिर चुके हैं. अपनी गिरती लोकप्रियता के कारण वह बिहार की राजनीति में तेजी से अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. यह 2020 के विधानसभा चुनावों में भी दिखाई दिया जब उनकी पार्टी की सीटों में 28 की कमी आई. जेडीयू 243 सदस्यों वाली विधानसभा में सिर्फ 43 सीट ही जीत सकी जबकी भाजपा को 74 सीट मिले.
जेडीयू के आरजेडी में विलय की क्या संभावना है?
जेडीयू के आरजेडी में विलय की प्रबल संभावना है. जेडीयू के भीतर कई लोगों को अपनी पार्टी डूबता हुआ जहाज लग रही है. इसे बचाने का एकमात्र उपाय जेडीयू में विलय है. यह भी सुझाव दिया जा रहा है कि बिहार में भाजपा की लोकप्रियता को रोकने के लिए तेजस्वी को बिना किसी देरी के मुख्यमंत्री बनाया जाए ताकि उन्हें 2024 लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव में जीत के लिए महागठबंधन का मार्गदर्शन करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके.
क्या है लालू प्रसाद की योजना?
लालू प्रसाद अपने दो बेटों में से छोटे तेजस्वी को बिहार का मुख्यमंत्री बनते देखने की अपनी इच्छा बार-बार जाहिर कर चुके हैं. इस पद की शोभा वह और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अतीत में बढ़ा चुके हैं.
माना जा रहा है कि वह दंड और पुरस्कार वाली नीति पर काम कर रहे हैं. अगर नीतीश कुमार उनके लिए स्वेच्छा से पद छोड़ देते हैं तब वह दूसरे दलों में अपने संपर्क का इस्तेमाल करके नीतीश को विपक्ष के प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेंगे.अगर नीतीश कुमार सहमत नहीं होते हैं, तो लालू जेडीयू में दल-बदल करवा सकते हैं या जेडीयू को विभाजित कर सकते हैं. इससे नीतीश कुमार की छवि को और ज्यादा नुकसान पहुंचेगा.