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महाराष्ट्र में क्यों उल्टा पड़ सकता है राहुल की दांव?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
28/03/23
in राज्य, राष्ट्रीय
महाराष्ट्र में क्यों उल्टा पड़ सकता है राहुल की दांव?
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नई दिल्ली : कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के विनायक दामोदर सावरकर पर लगातार दिए जा रहे बयान से देश की सियासत गरमा गई है. बीजेपी आक्रामक है तो महाराष्ट्र में कांग्रेस के सहयोगी नेता उद्धव ठाकरे नाराज हैं. उद्धव ठाकरे ने तो कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ने तक की चेतावनी देते हुए कहा कि सावरकर का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. शिवसेना उद्धव गुट ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के द्वारा बुलाई गई विपक्षी की बैठक में भी शिरकत नहीं किया. सवाल उठता है कि राहुल गांधी क्यों सावरकर को अपने निशाने पर लेते हैं, क्या सियासी संदेश देना चाहते हैं और उद्धव ठाकरे क्यों कांग्रेस से इस मुद्दे पर अपने आपको अलग रखते हैं.

लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद शनिवार को प्रेस कॉफ्रेंस के दौरान राहुल गांधी से सवाल किया गया कि लोग कहते हैं कि राहुल गांधी माफी मांग लेते, तो राहुल गांधी क्या सोचते हैं. इस सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि मेरा नाम सावरकर नहीं है, मेरा नाम गांधी है. गांधी किसी से माफी नहीं मांगता. राहुल गांधी ने यह बात पहली बार नहीं कही थी बल्कि इससे पहले भी कई बार कह चुके हैं और अक्सर सावरकर को निशाने पर लेते रहते हैं.

1. सावरकर के अपमान पर उद्धव के रास्ते क्यों कांग्रेस से अलग हो जाते हैं?

राहुल गांधी का सवारकर पर दिया जा रहा बयान शिवसेना के उद्धव गुट को नागवार गुजर रहा है. उद्धव ठाकरे ने रविवार को मालेगांव में आयोजित एक सभा में कहा कि हम कांग्रेस के साथ जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वह देश, संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए है, लेकिन राहुल गांधी को सावरकर के बारे में कुछ भी अनापशनाप बोलना बंद करना चाहिए. भविष्य में भी बोलने से राहुल को बचना चाहिए.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तमाम विपक्षी दलों के सांसदों के लिए डिनर पार्टी का आयोजन किया है, लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने इस डिनर पार्टी का बहिष्कार किया है. शिवसेना उद्धव गुट के किसी ने नेता नेडिनर पार्टी में शिरकत नहीं की. इस तरह से कुल मिलाकर शिवसेना उद्धव गुट ने साफ संकेत दे दिया है कि सावरकर को लेकर राहुल गांधी के बयान को अब बर्दाश्त नहीं करेगी और अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन भी तोड़ना पड़ा तो पीछे नहीं हटेगी.

बता दें कि हिंदुत्ववादी विचारधारा के जनक कहे जाने वाले विनायक दामोदर सावरकर को बीजेपी ही नहीं बल्कि शिवसेना भी अपने आदर्श नेताओं में से एक मानती है. बाल ठाकरे के दौर से ही शिवसेना सावरकर को महान मानती रही और उनकी आलोचना को कभी बर्दाश्त नहीं करती. इसकी वजह यह है कि महाराष्ट्र की सियासत में सावरकर का अच्छा खासा सियासी ग्राफ है और उनकी अपनी लोकप्रियता है.

महाराष्ट्र में चितपावन ब्राह्मणों की मतदाताओं के तौर पर बड़ी संख्या है, जो पूरा मराठी समाज है, उसको बचपन से ही वीर सावरकर की गाथाएं यहां पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाई जाती हैं. घरों में वो सुनाया जाता है. एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो बचपन से ही महाराष्ट्र की जनता के मन में है. यही वजह रही कि महाराष्ट्र चुनाव के दौरान बीजेपी उन्हें ‘भारत रत्न’ देने की बात अपने घोषणा पत्र में कही थी तो शिवसेना भी यह मांग अक्सर उठाती रही है.

2. आजादी आंदोलन में सावरकर की भागेदारी और माफीनामा

सावरकर और महात्मा गांधी ने देश की आजादी के आंदोलन की लड़ाई में हिस्सा लिया था, लेकिन दोनों में विचारधारा में कोई मेल कभी नहीं रहा. महात्मा गांधी जीवन भर अहिंसा और सत्य पर जोर देते रहे जबकि सावरकर अति उग्र क्रांति का समर्थन करते रहे. सन 1910 में नासिक के अंग्रेज कलेक्टर जैक्सन की हत्या हुई थी. पुलिस का दावा था कि ‘अभिनव भारत’ नामक संस्था के लोग इस हत्या के जिम्मेदार हैं.

अभिनव भारत संस्था का गठन सावरकर किया था, लेकिन जिस समय जैक्सन की हत्या हुई, उस समय सावरकर लंदन में थे. भारत में उनके बड़े भाई गणेश को गिरफ्तार किया गया और सावरकर को भी लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर आरोप था कि जिस पिस्टल से जैक्सन की हत्या हुई, वह सावरकर ने लंदन से अपने भाई गणेश को भिजवाई थी. जैक्सन पर जिसने गोलियां चलाईं, उनका नाम कान्हेरे था. उन्हें बाद में फांसी की सजा हुई.

सावरकर को भारत लाकर उन पर मुकदमा चलाया गया. हत्या और राष्ट्रद्रोह के नाम पर 25-25 साल की दो सजाएं अंडमान में भुगतने का आदेश हुआ. इसे ही ‘काले पानी’ की सजा कहा जाता है. अंडमान की सेल्युलर जेल के दस्तावेजों के अनुसार, सावरकर ने एक नहीं, छह बार दया याचिका दी थी. सावरकर 9 साल 10 महीने जेल में थे. ब्रिटिश सरकार बीच-बीच में राजनीतिक कैदियों को रिहा करती थी और कैदियों से प्रार्थना-पत्र मांगा करती थी. इसी के चलते सावरकर ने दया याचिकाएं के लिए छह बार माफीनामे लिखे.

शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टियां सावरकर को अपना आदर्श पुरुष, सच्चा देशभक्त, राष्ट्रपुरुष और देश का स्वतंत्रता सेनानी मानती है. वहीं, आजादी के आंदोलन के दौरान सावरकर के अंग्रेजों से माफी मांगने को लेकर कांग्रेस अक्सर बीजेपी के राष्ट्रवाद पर सवाल खड़ी करती रही है. राहुल गांधी आए दिन अपने बयानों से सावरकर को माफी मांगने वाले नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश करते रहते हैं.

3. राहुल ने सावरकर पर कब-कब हमला किया?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहली बार 14 दिसंबर 2019 को रामलीला मैदान में ‘भारत बचाओ रैली’ में सावरकर के जरिए बीजेपी पर काफी आक्रामक हमले किए थे. झारखंड की रैली में ‘रेप इन इंडिया’ वाले बयान पर बीजेपी की माफी मांगने की मांग पर राहुल गांधी ने कहा था, ‘ये लोग कहते हैं माफी मांगो. मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं है, राहुल गांधी है . मैं सच बात बोलने के लिए कभी माफी नहीं मांगूंगा. मर जाऊंगा, पर माफी नहीं मांगूंगा.’ इसके बाद राहुल गांधी अक्सर सावरकर हमले करते रहते हैं.

राहुल गांधी ने नवंबर 2022 को भारत जोड़ो यात्रा के दौरान महाराष्ट्र के वाशिम ज़िले में आयोजित एक रैली में सावरकर को लेकर बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि एक ओर बिरसा मुंडा जैसी महान शख्सियत हैं, जो अंग्रेजों के सामने झुकी नहीं और दूसरी ओर सावरकर हैं, जो अंग्रेजों से माफी मांग रहे थे. उन्होंने कहा था कि सावरकर जी, दो-तीन साल उन्हें अंडमान में बंद कर दिया तो उन्होंने चिट्ठी लिखनी शुरू कर दी कि हमें माफ कर दो. जो भी हमसे चाहते हो ले लो, बस मुझे जेल से निकाल दो.

राहुल के बयान पर सावरकर के पोते रंजीत ने मुंबई के शिवाजी पार्क थाने में राहुल गांधी के खिलाफ शिकायत की थी. राहुल गांधी ने एक चिट्ठी भी पेश करते हुए दावा किया था कि ये सावरकर ने लिखी थी. राहुल गांधी ने कहा था, ‘ये मेरे लिए सबसे जरूरी डॉक्यूमेंट है. ये सावरकरजी की चिट्ठी है जो उन्होंने अंग्रेज़ों के लिए लिखी है. जिसकी आखिरी लाइन है- सर मैं आप का नौकर रहना चाहता हूं. वीडी सावरकार.’ राहुल ने कहा, ‘ये मैंने नहीं लिखा. सावरकर जी ने लिखा है. आप इसको पढ़ लीजिए, देख लीजिए. अगर देखना चाहते हैं इसको वो भी देख लें. मैं तो इसमें बहुत स्पष्ट हूं. सावरकर जी ने अंग्रेज़ों की मदद की थी और जेल में रहने के दौरान उन्होंने माफीनामे पर हस्ताक्षर करके महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को धोखा दिया था.

16 मार्च 2023 को दिल्ली पुलिस ने राहुल गांधी को नोटिस भेजकर सवाल पूछा था कि वो कौन सी महिलाएं हैं, जिन्होंने ऐसा कहा है. राहुल गांधी उनकी डिटेल्स दिल्ली पुलिस को दें. राहुल गांधी के इसी बयान के मामले में रविवार को दिल्ली पुलिस उनके आवास पर पहुंच गई. पुलिस के इस एक्शन के बाद कांग्रेस ने हल्ला बोल दिया. पुलिस से मुलाकात के बाद राहुल गांधी अपने आवास से खुद कार ड्राइव करते हुए निकले थे. उनकी कार चलाते हुए फोटो ट्वीट करते हुए कांग्रेस ने लिखा था, ‘सावरकर समझा क्या, नाम- राहुल गांधी है.’ अब जब माफी मांगने की बात होती है तो राहुल यही कहते हैं कि ‘मैं सावरकर नहीं बल्कि गांधी हूं.’

4. सावरकर के बहाने क्या संदेश दे रहे राहुल

कांग्रेस नेता राहुल गांधी सावरकर पर अभी जिस तरह से हमलावर है, उसके जरिए यह बताने की कवायद कर रहे हैं कि संघ के विचाराधारा वाले नेताओं का आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं रहा और सावरकर ने तो माफी मांगकर स्वतंत्रता सेनानियों के साथ धोखा किया है. यह भी बताने की कोशिश की जाती है कि कांग्रेस पार्टी तो महात्मा गांधी के विचारधारा पर चलने वाली पार्टी है और सावरकर की विचारधारा को मानने वाले लोगों ने गांधी की हत्या की थी.

सावरकर को महाराष्ट्र से बाहर देश के दूसरे राज्यों में राजनीतिक पहचान और सियासी अहमियत उतनी नहीं मिली जो उन्हें उनके गृह राज्य में मिली है. कांग्रेस इस बात को बाखूबी समझती है. यही वजह है कि कांग्रेस सावरकर के जरिए बीजेपी की दुखती रग दबाती जा रही है और एक के बाद एक करारा हमला कर रही है. बीजेपी और शिवसेना उद्धव गुट सावरकर को महान स्वतंत्रता सेनानी बताती है, जबकि कांग्रेस और राहुल गांधी लगातार सावरकर की भूमिका को लेकर संदेह और सवाल खड़े करते आए हैं. राहुल इस बहाने बीजेपी और आरएसएस के राष्ट्रवाद को कठघरे में खड़े करते हैं.

5. महाराष्ट्र में कांग्रेस के लिए उलटा न पड़ जाए दांव

महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं की सियासी मजबूरी है कि वे राहुल गांधी के बयान का बचाव करते हैं. हालांकि, वे चाहते हैं कि सावरकर के मुद्दे को बेवजह तूल न दिया जाए, क्योंकि शिवसेना के उद्धव गुट ही नहीं बल्कि पार्टी के कई नेताओं को बचाव करते नहीं बनता है. सावरकर के खिलाफ बयानबाजी कर महाराष्ट्र में सियासी हित नहीं साधे जा सकते हैं.

हालांकि, महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले एक बयान जारी कर कह चुके हैं कि हमारा शिवसेना के साथ जो महा विकास अघाड़ी का गठबंधन हुआ था, वो वैचारिक आधार पर नहीं हुआ था. हम दो अलग-अलग विचारधारा वाली पार्टी हैं. हमारा जो गठबंधन हुआ था, वो एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत हुआ था, जिसमें हम जनता के हितों के मुद्दों पर लड़ने के लिए और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक साथ आए थे. उन्होंने ये भी कहा कि कांग्रेस की जो विचारधारा है सावरकर के बारे में, वो कोई नई नहीं है. हमने कोई नया स्टैंड नहीं लिया है. इसीलिए शिवसेना उद्धव गुट को भी स्टैंड लेना पड़ रहा.

राहुल गांधी बार-बार सावरकर पर निशाना साध रहे हैं, उससे कांग्रेस-शिवसेना के महाराष्ट्र में गठबंधन पर भी खतरा मंडराने लगा है. उद्धव ठाकरे ने साफ तौर पर कह दिया है कि राहुल गांधी अगर सावरकर पर अपनी बयानबाजी नहीं बंद करते हैं तो फिर साथ रहना मुश्किल होगा. ऐसे में अब देखने वाली बात ये है कि राहुल गांधी, शिवसेना नेताओं की इन नसीहतों को कितनी गंभीरता से लेते हैं.

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