नई दिल्ली : जम्मू और कश्मीर में विधानसभा चुनावों की घोषणा होने का इंतजार किया जा रहा है। ऐसे समय में लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधिकारों में बढ़ोतरी को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच ये बातें सामने आ रही हैं कि दरअसल शासन की अस्पष्टता दूर करने के लिए यह करना जरूरी हो गया था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक जम्मू और कश्मीर में इस साल सितंबर महीने तक केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा का चुनाव हो जाना है। इससे पहले ही केंद्र सरकार ने यहां पुलिस, आईएएस और आईपीएस समेत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग, एंटी-करप्शन ब्यूरो और मुकदमा चलाने या मना करने के संबंध में उपराज्यपाल (LG) की शक्तियों को और स्पष्ट किया है।
शासन व्यवस्था में स्पष्टता के लिए बदलाव
टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में चुनी हुई सरकार सत्ता में आएगी और विधानसभा का गठन होगा। इसी को देखते हुए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 32 में उपनियम शामिल किया गया है, ताकि इसको लेकर कोई अस्पष्टता की स्थिति नहीं रह जाए।
अधिनियम में पहले से ही है शक्तियों के संतुलन की व्यवस्था
धारा 32 जम्मू और कश्मीर विधानसभा को पुलिस, पब्लिक ऑर्डर या समवर्ती सूची के अलावा अन्य विषयों पर कानून बनाने की अनुमति देता है। इस कानून की धारा 53 उपराज्यपाल को विधानसभा के अधिकारों के तहत आने वाली शक्तियों के अलावा अन्य मामलों में अपने विवेक से निर्णय लेने की शक्ति देता है।
‘किसी भी अस्पष्टता से बचने’ के लिए उठाया कदम- सूत्र
गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक ‘मौजूदा अधिसूचना केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में प्रशासन की प्रक्रिया के संचालन के वास्ते बेहतर स्पष्टता प्रदान करने के लिए है।’ मतलब, इसका कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में किसी तरह के परिवर्तन से लेना-देना नहीं है, ‘किसी भी अस्पष्टता से बचने’ के लिए शासन-संचालन के लेन-देन के नियमों में बदलाव किया गया है।
पहले से ही बने कानूनों को किया गया है और ज्यादा स्पष्ट
गृह मंत्रालय सूत्रों के अनुसार ‘यह अधिसूचना किसी भी तरह से जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 में निहित शक्तियों में उपलब्ध सत्ता के संतुलन को नहीं बदलती है।’ सूत्रों का साफ कहना है कि ‘विधानसभा और एलजी के कार्यों की शक्तियां अधिनियम में स्पष्ट रूप से परिभाषित और चित्रित किया गया है और अब इसे ही ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स में जाहिर किया गया है।’
गैर-भाजपाई दलों को हो रही है बदलाव से आशंका
हालांकि, जम्मू और कश्मीर की गैर-भाजपाई राजनीतिक दलों को लग रहा है कि इसके माध्यम से केंद्र सरकार भविष्य में सत्ता में बैठने वाली राज्य सरकारों के पर कतरने का इंतजाम कर रही है।
मसलन, पूर्व सीएम और नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुला को लगता है कि इसके माध्यम से अभी से ही रबर स्टांप मुख्यमंत्री की तैयारी हो रही है। उन्होंने एक्स पर लिखा है, ‘जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टांप सीएम से बेहतर के हकदार हैं, जिन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए एलजी से भीख मांगनी पड़ेगी।’
वहीं पीडीपी के वरिष्ठ नेता वहीद पारा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि इन बदलावों के बाद विधानसभा ‘बेमतलब’ का हो जाएगी और ‘यह ऐसी विधान सभा होगी, जिसके पास कानून बनाने की शक्ति नहीं होगी।’
पीएम मोदी की घोषणा के बाद बढ़ी चुनाव की गतिविधियां
दरअसल, पिछले 21 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर जम्मू और कश्मीर में जल्द विधानसभा चुनाव करवाने और इसके राज्य का दर्जा बहाल करने का भरोसा दिया था। गृहमंत्री अमित शाह भी एक इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय की गई डेडलाइन से पहले चुनाव करवाए जाने का आश्वासन दे रखा है।