-बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की सोच को झकझोर रहा है प्राइवेट सिस्टम !-
आज एक विचार किया हम ‘बुद्दिजीवी वर्ग’ के लोग इतने कमजोर और लाचार हैं, कि कोई हमारी मानसिकता पर दूसरे लोग और प्राइवेट सिस्टम के लोग हमें हमारे बच्चों के नाम पर लूट करने के लिए योजना बनाकर भेज रहे हैं, और हम उसको पढ़ कर चिंता में बच्चों के भविष्य की योजना के बारे में सोचने में लग जाते हैं कि आगे क्या होगा ?
एक तरफ हम अपनी जॉब के बारे में सरकार की आदेश का इंतजार करते है और दूसरी तरफ सरकार ने राजकीय विद्यालय को खोलने के बारे में और बच्चो के एडमिशन की लिए कोई निर्णय नहीं लिया जबकि दूसरी तरफ इन प्राइवेट स्कूल वालो ने अपनी मन मर्जी से बिना सरकार के आदेश के एडमिशन चालू कर लिए है इसके लिए किस नियम और कानून के इन प्राइवेट स्कूल को खुली छोट दी है आप ओपनली पैरेंट को उनके मोबाइल पर सन्देश भेज कर नए एडमिशन और फीस जमा करने का सूचना जारी करे. पिछले 80 दिन से देश Lockdown है और तमाम व्यवस्था बंद है. सरकार स्कूल खोलने के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं कर पायी है. बच्चो के मामले में कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है ऐसे में ये प्राइवेट स्कूल के कितने हौसले बुलंद है की वो बिना स्कूल खुले एडमिशन के लिए कह रहे है.
एक तरफ पेरेंट्स अपनी इनकम के लिए परेशां है ऐसे में ये सन्देश की एडमिशन चालू है और फला दिनांक के बाद एडमिशन बंद होंगे. पेरेंट्स कर्जा लेंगे क्या ???क्या कोई इस देश में ये बता सकता है की एक पिता अपने बच्चो को किसी स्कूल में पढ़ने की लिए पहले तो वह जुगाड़ लगाए और वही स्कूल ऐसे माहौल में जब पुरे विश्व में महामारी फैली है और जीवन का संकट बना है नयी कक्षा में एडमिशन के लिया दबाव बनाये, ऐसे में आदमी बीमारी से बचाव करे, परिवार का पालन करे या इन स्कूल को मांग करने पर फीस अदा करे, इन पर कोई अंकुश लगाने का सिस्टम है की नहीं हमारे प्रधानमंत्री जी, मुख्यमंत्री जी, जिलाधीश महोदय, शिक्षा अधिकारी या भगवन कोई तो हो जिससे इसके न्याय की उम्मीद रखे…मुझे तो हर बात के लिए प्रधानमंत्री जी को कहना भी ठीक नहीं लगता. इस के लिए देश में प्रशाशनिक तंत्र है वो क्यों नहीं न्याय करते है जनता के साथ आखिर उनको अधिकार तो जनता के न्याय के लिए ही प्रदत किये है, तो जनता के सुख दुःख के निवारण के लिए ही किया जाता है और वो सक्षम भी है अपने अधिकार का प्रयोग कर के एक आम आदमी और उसके बच्चो के दुःख का निवारण करे.
अगर इस समय महामारी नहीं होती तो ये बात भी नहीं आति और आप से अनुनय विनय भी नहीं करनी पड़ती पर आप का वास्तविक कर्त्तव्य भी यही है पर हिम्मत करे कौन ??एक सामान्य आदमी जो किसी कंपनी या शॉप पे काम करता है अपनी इनकम के लिए तनाव में है वही दूसरी और उसके बच्चो का एडमिशन का प्रेशर उस पर पड रहा है. वो जाये तो कहा जाये किस को कहे की फला स्कूल में मेरे बच्चा पढता है उसको वो एडमिशन के लिए कह रहे है में कैसे इस मुश्किल के निपटु . साहब शिकायत तो कलेक्टर से करे भी पर कैसे और शिकायत के बाद उसके बच्चे का क्या होगा, कोई प्राइवेट इस बात से एडमिशन नहीं देगा की पहले भी इस के पेरेंट्स ने पिछले वाले स्कूल की शिकायत की थी, तो क्या वो स्कूल उस के बच्चे को सद्भाव से देखेगा नहीं न………..तो कब तक इस देश में ये एक भारतीय नागरिक के अधिकारों का हनन करेंगे और उसकी जब में रखे धन को लूट लेंगे और किसी भी अदालत में उसकी सुनवाई नहीं होगी. और हॉ गलती कोई और जानबुझ कर करे और उसके बदले में एक सामान्य आदमी अदालत में जा कर न्याय की अपील करे…….क्यों साहब हमारी कमाई क्या ईमानदारी की नहीं है जो ये लूट ले और हम ऊफ तक नहीं कर पाए……एक मध्यम वर्ग के व्यक्ति का हाल अभी सब से बुरा है. वो न तो सरकार से मिली मदद के लिए हक़दार है और न ही अपना व्यापार कर पाया न ही कोई रोजगार इन 80 दिनों में मिला. तो क्या उसके बच्चो और परिवार को खाने को नहीं चाहिए वो हवा तो नहीं खाते है पर किस को कहे, कौन सुने।
सरकार को इस बात की जानकारी है कि जो लोग गैर-सरकारी संगठन में कार्यरत हैं इस अवधि में वह सभी बंद है और इन धनवान लोगों ने अपने कर्मचारियों को वेतन भी नहीं दिया, ऐसे मे शहर के मकान किराए तथा भोजन का प्रबन्ध करना ही मुश्किल हो रहा है, बहुत कम बचत में परिवार चलाने तथा बच्चों की फीस देकर पढ़ाना पहले ही मुश्किल था अब महामारी के कारण बंद ने इधर उधर हाथ फेलाने और उधारी पर मजबूर कर दिया। एक तरफ रोजगार की चिंता और उपर से बंद शिक्षा संस्थान द्वारा फीस की मांग करना । जब सरकार अपने अधीन संचालित विद्यालय नहीं खोल रही तो ये निजी विद्यालय कैसे खुल रहे हैं और सरकारी तंत्र की नाक के नीचे मनमाने ढंग से फीस की मांग कर अभिभावक की परेशानी बढ़ा रहे हैं।
सरकार को एक आदेश के द्वारा इस समय इन संस्थाओं को परिस्थिति सामान्य होने तक बंद करने का आदेश दिया जाए तथा अन्य आदेश तक कोई फीस वसूली नहीं की जाए।
मध्यमवर्गीय परिवार को सरकारी मदद भी नहीं मिलती, वो इतने समय बिना काम किए भी ग़रीब नहीं माना जाता या मजबूर होने के कारण सरकारी मदद के योग्य ही माना जाता है, क्या की मानवीय संवेदना को इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि इन लोगो की भी मदद दी जानी चाहिए, कुछ नहीं तो इन पर परिवार की जिम्मेदारी के तहत जो भार दूसरे संस्थानों द्वारा डाला जाता है उसे अखबार में सार्वजनिक सूचना के आधार पर रोकने की सूचना जारी करे ताकि समयानुसार उसे राहत मिल सके। मैं केन्द्र और राज्य सरकारों से अपील करता हूं कि आपके एक आदेश से देश के लाखों अभिभावक को राहत मिलेगी। आप इस समय इससे बहुत बड़ी राहत प्रदान करेंगे जो अन्य कोई मदद से ज्यादा होगी। मेरे इस आव्हान पर सरकार आदेश जारी करतीं है तो मेरा यज्ञ सफल हो जाएगा और लाखों अभिभावक लाभान्वित होंगे।
हालात नियंत्रण में नहीं है और हम विश्व में चोथे स्थान पर आ गये तो क्या बच्चों के विद्यालयों में जीरो सत्र (शून्य काल) नहीं किया जा सकता है और राज्य सरकारें भी इसे तुरंत अपने अधीन संचालित विद्यालय में लागू करे। अनुकुल परिस्थिति में 5 दिन में ही पुनः आदेश जारी कर विद्यालय प्रारंभ किये जा सकते हैं।
वतर्मान स्थिति में आनलाईन शिक्षण सिर्फ शहरी क्षेत्र में और सक्षम वर्ग के लोगों की पहुंच में है तो क्या दुरदराज और ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर उनका भविष्य अंधकारमय कर उनको पिछड़ने को लिए यह योजना लाई गयी है।
कृपया आप वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा को बल देते हुए आमजन को राहत प्रदान करे।
सरकार अब भी मजदूर और प्रवासियों के लिए ही चिंतित है घर में बैठे लोग मर रहे है लोग खर्चे के लिए आय को तरस रहे हैं, तनाव में रहते हैं, ऐसा ना हो कि आर्थिक संकट और कर्ज के कारण लोग आत्महत्या करने लग जाएं समय रहते इस पर नियंत्रण करना आवश्यक है, उनकी कौन सुने………देश कहा जा रहा है, क्या हो रहा है, सब तरफ अंधेर गर्दी है…
लेखक : डा. प्रद्यूमन सिंह राणावत सहायक आचार्य, मोलसुवि, उदयपुर