सागर : छतरपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर लोढ़ा कस्बे से गुजरने के दौरान एक सरकारी दफ्तर में कोई तीन-चार सौ लोगों की भीड़ जमा दिखी। भीड़ गुस्से में नारे लगा रही थी। आसपास के कई थानों की पुलिस जीप भी दिख रही थी। भीड़ के पास पहुंचने पर पर हालात तनावपूर्ण दिखे। मौके की फोटो लेनी चाही तो पुलिस अधिकारी ने आपत्ति जताई। मगर, भीड़ के विरोध के कारण वह चुप हो गए। पूछताछ पर पता चला कि इलाके के किसान सरकारी दर पर यूरिया लेने के लिए जमा थे। वे कई दिनों से सुबह चार बजे से लाइन में लगते थे, लेकिन उन्हें लौटना पड़ता था। उस दिन तय हुआ था कि किसानों को बगल के थाने में पर्ची मिलेगी और उसी पर्ची से यूरिया कृषि ऑफिस में मिलेगा। पर्ची सिर्फ 280 लोगों को ही मिलेगी। मगर, उस इलाके के हर किसान को इसकी जरूरत थी। इसी पर किसानों का गुस्सा बढ़ गया।
क्या कहते हैं एमपी के किसान
बगल के गांव से आए किसान कुंजन सिंह ने कहा कि यह सिर्फ आज की बात नहीं है। हाल के दिनों में खाद को लेकर ऐसी दिक्कत उन्हें झेलनी पड़ी है। वे सभी सरकार-प्रशासन को कोसते हैं। नेता से लेकर अधिकारी तक कोई नहीं सुनता। इस बार जब वह वोट डालेंगे तो उन्हें यह सब याद रहेगा। पूरे इलाके में किसानों की दशा एक बार फिर 2018 की तरह चुनावी मुद्दा बनने लगा है।
सागर में एक BJP कार्यकर्ता सुंदर पटवारी स्वीकार करते हैं कि अगर किसानों का वोट पूरा कांग्रेस को जाएगा तो BJP के लिए दिक्कत होगी। उन्होंने यह भी माना कि किसान की हालत बहुत ही खराब है, लेकिन तर्क दिया कि शिवराज सरकार ने खतरा भांपते हुए डैमेज कंट्रोल किया है। सस्ती बिजली से कुछ कर्ज माफ जैसी पहल की लेकिन इससे गुस्सा कितना कम होगा वह 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।
फायदा किसको मिलेगा?
मुरैना के किसान चंदू शर्मा कहते हैं कि इस बार ऐसा चुनाव है जिसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता है। उनका मानना है कि इस बार बदलाव की बात सियासी माहौल में है। खाद नहीं मिलने की बात वह करते हैं। क्या कांग्रेस इसका लाभ लेगी? बात यहीं फंसी है। मुरैना में ही गंगा पटेल बताते हैं कि उन पर 7 लाख का लोन था। 2018 में कांग्रेस ने कर्ज माफी का ऐलान किया तो उन्होंने किश्त देना बंद कर दिया। मगर, चुनाव के बाद जब सरकार बनी तो उनकी कर्ज माफी नहीं हुई। अब ब्याज बढ़ता जा रहा है। बैंक कोई दूसरी मदद भी नहीं दे सकता है। कांग्रेस से भी वह ठगा महसूस कर रहे हैं। कई किसानों की शिकायत कांग्रेस से यह है। ऐसे में नाराज किसानों को अपने पक्ष में करना कांग्रेस के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।
आवारा पशु भी बड़ा मुद्दा
इलाके में आवारा पशुओं की समस्या भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरी है। किसान बताते हैं कि चाहे मक्का हो या कोई दूसरी फसल आवारा पशु बहुत नुकसान कर रहे हैं। इससे बचाव के लिए बंदी गांव में राकेश बताते हैं कि नुकीली तारों से खेत को घेरा। उसे पार करने में वह कई बार छिल चुके हैं। हाथ-पैर में आए घाव उन्होंने दिखाए। गांव के कई लोगों में यह घाव उनकी परेशानियों की गवाही है। मजाक में कहते हैं बस ईंट का किला खड़ा करना ही एकमात्र उपाय है। यह समस्या सिर्फ उनकी नहीं है। सागर से कुछ दूर एक गांव में लोग आवारा पशुओं की बात करते हैं। फिर कहते हैं कि उन्हें कहीं बाहर भी नहीं ले जा सकते हैं। गौ रक्षा के नाम पर कुछ लोगों ने इतना डरा दिया कि अब कोई इसे लेने भी नहीं आता है। सरकार ने जो गौशाला बनाने की योजना का ऐलान किया वह धरातल पर कहीं नहीं दिखती है। गांव में लोग रतजगा कर आवारा पशुओं से फसल की रक्षा करते हैं।
किस मुद्दे पर टिका चुनाव?
हाल के चुनाव में सभी राज्यों में किसानों के मुद्दे सियासत को बहुत प्रभावित करने लगे हैं। किसान सबसे बड़े मजबूत वोट बैंक बने हैं। मध्य प्रदेश जहां लगभग 70 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी है यह मुद्दा और बड़ा प्रभावी हो जाता है। 2018 में भी मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले किसानों के मुद्दे हावी हुए थे। मंदसौर में किसानों पर चली गोली और फिर कांग्रेस की किसानों की कर्ज माफी के वादे ने पार्टी को चुनावी लाभ दिया था। इस बार कांग्रेस किसानों को फ्री बिजली का वादा कर रही है। उधर, BJP कमलनाथ की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार के शासन में कर्ज माफ नहीं करने को मुद्दा बना रही है। कुल मिलाकर दोनों दलों को लग चुका है कि किसान ही चुनाव की दिशा तय करेंगे।