नई दिल्ली: अपने 11वें स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को नया नाम देकर क्या मास्टर स्ट्रोक खेला है? उन्होंने देश में मौजूद संहिता को कम्युनल सिविल कोड कहकर पुकारा और इसकी जगह सेक्युलर सिविल कोड की वकालत की. कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है. पर राजनीति में नाम ही सब कुछ है. पिछले साल विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रख दिया. इसके बाद केंद्र की एनडीए सरकार ने भारत शब्द को प्रमोट करना शुरू कर दिया. बहुत सी जगहों से इंडिया खत्म ही कर दिया गया. विपक्ष ने जिस तरह गठबंधन का नाम इंडिया रखकर सत्तारूढ़ गठबंधन पर बढ़त बना लिया था , ठीक उसी तरह केंद्र सरकार ने यूनिवर्सल सिविल कोड को सेक्युलर सिविल कोड का नाम देकर विपक्ष पर बढ़त हासिल करने की सोच रहा है.
पीएम मोदी के इस कदम को बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर गेमचेंजर समझा जा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि पीएम मोदी का आरोप सेक्युलर विपक्षी दलों पर एक परोक्ष हमला प्रतीत होता है, जिन्होंने हमेशा भाजपा के यूसीसी एजेंडे को निशाना बनाया है. दरअसल 1985 में सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले के बाद जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना की थी तभी से भाजपा यूसीसी की मांग बड़े पैमाने पर उठाती आई है. देश में बहुत सी पार्टियां मुस्लिम समुदाय को यूसीसी का डर बनाकर उनका वोट लेती रही हैं, पर इससे होने वाले फायदे के बारे में सोचकर आंखें मूंद लेती रही हैं.अब गेंद विपक्ष के पाले में हैं. भारतीय जनता पार्टी को आगामी विधानसभा चुनावों में विपक्ष पर हमलावर होने का मौका मिल गया है.
सीधी सी बात है कि सिर्फ नाम बदलकर धर्मनिरपेक्ष संहिता रख देने भर से देश के तथाकथित लिबरल्स इसका सपोर्ट नहीं करने वाले हैं. पर हां उनके लिए मुश्किल जरूर पैदा होने वाली है. और यह भी है कि बीजेपी चाहेगी भी नहीं कि उदारवादी ब्रिगेड और विपक्ष सेक्युलर कोड का सपोर्ट करे. क्योंकि अगर विपक्ष और लिबरल्स ब्रिगेड इस कानून का सपोर्ट करता है तो फिर बीजेपी को राजनीति करने का मौका भी नहीं मिलेगा. बीजेपी के लिए यह अच्छा ही रहेगा कि सभी मिलकर सेक्युलर सिविल कोड का विरोध करें.
वीर सांघवी ने एक बार लिख था कि हैरानी की बात यह है कि जो लोग नेहरू और आंबेडकर के प्रति सम्मान जाहिर करते हैं वे भी समान नागरिक संहिता के लिए इन दोनों नेताओं की अपील को ठुकरा देते हैं. रामचंद्र गुहा कोई हिंदू संप्रदायवादी नहीं हैं लेकिन 2016 में उन्होंने लिखा था— ‘मेरा मानना है कि समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवी भारत और दुनियाभर में समाजवादी तथा महिलावादी आंदोलनों की प्रगतिशील विरासत को नकार रहे हैं. वे चाहे इसे मानें या न मानें, वे यथास्थिति की पैरवी करते नज़र आते हैं, जिनके उत्पीड़ित व भ्रमित तर्कों से केवल मुस्लिम पुरुषों और इस्लामी मुल्लाओं के हित ही सधते हैं.’
सेक्युलर सिविल कोड पर सरकार बढ़त बना चुकी है
जिस तरह का विरोध वक्फ बिल पर सरकार को विरोध देखने को मिला उम्मीद की जा रही है कि इस तरह का विरोध सेक्युलर सिविल कोड पर नहीं होने वाला है. कांग्रेस ने सीएए पर जैसे कभी खुलकर विरोध नहीं किया समझा जा रहा है कि सेक्युलर सिविल कोड पर भी वो गलती नहीं करने जा रही है. पूर्व पीएम राजीव गांधी की एक गलती अभी तक कांग्रेस के लिए भारी पड़ती आई है. शाहबानो वाले मामले में राजीव गांधी ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ कानून बनाकर अपनी आधुनिक छवि को खराब कर दिया था.विपक्ष की ओर से जिस तरह के विरोध की आशा की जा रही थी अभी तक वैसा कुछ दिख नहीं रहा है.सेक्युलर सिविल कोड का विरोध उस तरह नहीं कोई कर रहा है कि इसे लागू नहीं होने देंगे. या सड़कों पर उतर कर विरोध करेंगे.कांग्रेस नेताओं का बयान देखिए.
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहते हैं कि पीएम मोदी ने बाबा साहेब आंबेडकर के सिविल कोड को कम्युनल कोड बोला. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ.वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद की प्रतिक्रिया भी संविधान के इर्द-गिर्द ही है. उन्होंने कहा है कि संविधान सबसे बड़ा है. संविधान जो अनुमति देगा, वही तो होगा. इसी तरह उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी प्रमुख मायावती का भी मुख्य फोकस बाबा साहब के संविधान को कम्युनल बोलने पर ही. ऐसा कोई नहीं कह रहा है कि सड़क पर उतर कर विरोध करेंगे.जिस तरह का फैसला दलित सब कोटे पर कांग्रेस का रहा है उम्मीद की जा रही है कि वैसा ही पार्टी सेक्युलर सिविल कोड पर भी करने वाली है.