लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार उत्तर प्रदेश ने देश की सियासत को झकझोर कर रख दिया। यूपी में भाजपा को तगड़ा झटका लगा, वहीं इंडी गठबंधन को बड़ी ताकत मिली। यूपी में जो एनडीए गठबंधन 2019 में 64 सीटों पर खड़ा था, वही 2024 में 36 सीटों पर फिसल गया। वहीं इंडी गठबंधन यानि सपा और कांग्रेस पिछले चुनावों में 6 सीट जीत सके थे, उन्होंने इस बार 43 सीटों पर परचम लहरा दिया। भाजपा के इस बेहद खराब प्रदर्शन में कहीं न कहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नाराजगी को भी कारण माना जा रहा था। इसी क्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को भी जोड़कर देखा जा रहा है। पूरा मामला क्या है आइए विस्तार से समझते हैं…
बीजेपी को विधानसभा चुनाव में आरएसएस से मिला सॉलिड फीडबैक
बात जुलाई 2021 की है। करीब 6 महीने बाद यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 होना था। राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ तभी से फील्डिंग में जुट गया था। नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले 2022 के चुनाव तक नागपुर छोड़कर लखनऊ में प्रवास करना शुरू कर रहे थे। उन्हें लखनऊ में रहकर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को मजूबत करने के मिशन पर लगाया गया था। वहीं भैया जी जोशी राम मंदिर निर्माण प्रॉजेक्ट के केयरटेकर थे। इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रभारी राधा मोहन सिंह ने लखनऊ प्रवास में संघ के अहम नेताओं के साथ बैठक की थी। जिसमें 2022 के चुनाव को लेकर संघ ने फीडबैक दिए थे। इसमें सत्ता विरोधी लहर की चुनौती से निपटना, कार्यकर्ताओं से नाराजगी काे दूर करना, प्रत्याशियों को लेकर जनता में रोष आदि कंट्रोल करने का संदेश था।
बीजेपी के मोर्च पर उतर गया संघ परिवार
यूपी में विधानसभा चुनाव चरण दर चरण आगे बढ़ा तो आरएसएस का ये सपोर्ट जमीन पर दिखाई देने लगा। भाजपा को एंटी इनकमबैंसी का जो नुकसान हो रहा था, उसे संघ ने हर विधानसभा में 400 से 500 छोटी बड़ी बैठकें कर पाटने का काम किया। वोटरों को जागरूक करना उन्हें बूथ तक भेजने का काम किया गया। संघ की प्रांत टोली, विभाग कार्यवाह, प्रचारक जिलों के समन्वयक, विधानसभा के समन्वयकों से सीधा संवाद किया गया। इस पूरे महाआयोजन में भाजपा के प्रभारी, राष्ट्रीय संगठन मंत्री गवाह रहे। इस पूरी एक्सरसाइज का फल ये हुआ कि आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा यूपी की सत्ता पर काबिज होकर इतिहास बना दिया। योगी ने दोबारा सत्ता संभाली और संघ वापस अपने काम की तरफ लौट गया।
लोकसभा चुनाव के बीच जेपी नड्डा का वो बयान
लेकिन दो साल बाद अब लोकसभा चुनाव 2024 में परिस्थितियां बदली हुई थीं। जनवरी में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से भाजपा आत्मविश्वास के लबरेज दिखाई दी। मोदी का चेहरा और राम मंदिर का श्रेय के साथ पन्ना प्रमुख तक फैल चुका पार्टी का संगठन देख पार्टी के नेता ये मानकर चल चुके थे कि यूपी फतेह तो तय है। भाजपा के इस कांफिडेंस का आभास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक बयान ने भी दिया। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्होंने कहा कि पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।
जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी बड़ी हो गई है और सभी को अपने-अपने कर्तव्य के साथ भूमिकाएं मिल चुकी हैं। आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है और हम एक राजनीतिक संगठन हैं। यह जरूरत का सवाल नहीं है। यह एक वैचारिक मोर्चा है। वो वैचारिक रूप से अपना काम करते हैं और हम अपना। हम अपने मामलों को अपने तरीके से मैनेज कर रहे हैं और राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए।
आरएसएस ने खुद को पूरी तरह समेट लिया
आरएसएस से दूरी का सीधा असर उत्तर प्रदेश में भी दिखाई दे रहा था। आमतौर पर चुनाव से पहले ही संघ परिवार और भाजपा के नेताओं की बैठकों का दौर शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। संघ से हर बार तो महत्वपूर्ण फीडबैक मिलता था वह भी नहीं मिला। पहली बार इस तरह का रुख देखने को मिला। संघ ने भी इस पर कुछ नहीं कहा और उसने अपने स्वयंसेवकों को वैचारिक कार्यक्रमों तक ही समेट लिया। भाजपा के पुराने नेताओं के अनुसार ऐसा लग रहा था चुनाव में हमें संघ परिवार की कोई जरूरत ही नहीं है। एकतरफा निर्णय लिए जा रहे थे संघ परिवार और उसके अनुषांगिक संगठनोंं से पूरी तरह संवादहीनता रही। इसका सीधा असर ये हुआ कि पूरे चुनाव में आरएसएस तटस्थ हो गया। वह अपने पूर्व निधार्रित कार्यक्रमों में ही रहा, उसने अपनी पूरी भूमिका समेट ली।
बता दें हर लोकसभा चुनाव से पहले आरएसएस के कार्यकर्ता हर लोकसभा क्षेत्र दर्जनों बैठकें कर लेते हैं। जनता क्या सोच रही है, प्रत्याशियों के बारे में उनका क्या ख्याल है, सांसद कितना प्रभावी है, मुददे कौन कौन से हैं, सत्ता विरोधी लहर कितनी है आदि का पूरा फीडबैक संघ के पास होता है। ये किसी भी राजनीतिक दल से ज्यादा सटीक माना जाता है। संघ से समय-समय पर फीडबैक भी तमाम माध्यमों से बीजेपी नेताओं को दिया जाता रहा है। इस बार भी परिस्थतियां प्रतिकूल होने का फीडबैक था लेकिन बीजेपी नेताओं ने इस पर गौर ही नहीं किया।
चुनाव के बीच नागपुर में बड़ा आयोजन
लोकसभा चुनाव के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विकास वर्ग- द्वितीय का आयोजन 17 मई को नागपुर में किया गया। दरअसल ये संगठन में प्रशिक्षण का अंतिम चरण है। पहले इसे तृतीय वर्ष प्रशिक्षण शिविर कहा जाता था। लेकिन आरएसएस इस वर्ष से प्रशिक्षण के लिए एक परिवर्तित नामकरण और एक संशोधित पैटर्न के साथ आया है। इसमें देश भर से स्वयंसेवक जुटे। उधर भाजपा चुनाव में जुटी थी दूसरी तरफ संघ अपने इस कार्यक्रम में व्यस्त था। देशभर से 936 शिक्षार्थियों ने इसमें भाग लिया।
इसी के समापन समारोह में नागपुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया। लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ? यह अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में हर पांच साल में होने वाली घटना है। उसके अपने नियम हैं। डायनेमिक्स के अनुसार होता है, लेकिन यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।
उन्होंने कहा कि चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है। सहचित्त संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आये इसलिए ऐसी व्यवस्था है। चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक दूसरे को लताड़ना, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं। विरोधी की जगह प्रतिपक्ष कहना चाहिए। चुनाव के आवेश से मुक्त होकर देश के सामने उपस्थित समस्याओं पर विचार करना होगा।
मोहन भागवत ने कहा कि तकनीक की मदद से झूठ को पेश किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा? विपक्ष को विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। वे विपक्ष हैं और एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं इसलिए उनकी राय भी सामने आनी चाहिए। चुनाव लड़ने की एक गरिमा होती है उस गरिमा का ख्याल नहीं रखा गया। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि हमारे देश के सामने चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। पिछले दस सालों में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हुई हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए हैं।