नई दिल्ली : सियासत में जब कभी सियासी संकट आता है तो राजनीतिक दलों के घराने और आकाओं के पास अपनी लाज बचाए रखने के लिए कुछ अभेद्य दुर्ग होते ही हैं. रायबरेली और अमेठी संसदीय सीटें गांधी परिवार की गढ़ मानी जाती रही हैं, लेकिन 2019 में मोदी लहर में अमेठी सीट को गांधी परिवार गंवा चुका है. राहुल गांधी को मात देकर बीजेपी की स्मृति ईरानी ने अपना कब्जा जमा रखा है और अब 2024 की चुनावी आहट के साथ ही सभी के मन में सवाल है कि गांधी परिवार अमेठी सीट से क्या दोबारा से किस्मत आजमाने के लिए उतरेगा या फिर उसे त्याग देगा?
बता दें कि उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली सीट से नेहरू-गांधी परिवार का एक भवनात्मक रिश्ता रहा है. 1977 के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट से गांधी परिवार के किसी सदस्य को चुनावी मात खानी पड़ी थी. 1977 में संजय गांधी हारे थे और 2019 में राहुल गांधी को मात खानी पड़ी. राहुल की हार से गांधी परिवार और कांग्रेस दोनों को सियासी तौर पर झटका लगा था.
अमेठी के हार के जख्म अभी भी हरे हैं?
अमेठी में राहुल गांधी को हार मिले पांच साल होने जा रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए अभी तक यह जख्म हरे हैं. ऐसे में गांधी परिवार का लगाव और भावनात्मक रिश्ता अमेठी से पहले की तरह नहीं रहा. 2019 के बाद से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने एक से दो बार ही अमेठी का दौरा किया है. इस तरह कांग्रेस अमेठी सीट को लेकर कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है. इसके चलते ही गांधी परिवार के किसी सदस्य का अमेठी सीट से चुनावी मैदान में उतरने पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है.
कांग्रेस और नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता अमेठी से काफी पहले रायबरेली के साथ जुड़ गया था. रायबरेली सीट पर 1977 में इंदिरा गांधी को जनता पार्टी के राज नारायण ने हरा दिया तो गांधी परिवार ने 43 सालों तक रायबरेली क्षेत्र से मुंह फेर लिया था. साल 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी रायबरेली और आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से चुनाव लड़ी थीं और दोनों ही सीटों से जीतने में कामयाब रही थीं, लेकिन उन्होंने रायबरेली सीट से इस्तीफा देकर मेंडक सीट को चुना. इसके बाद इंदिरा गांधी कभी भी रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ीं.
इंदिरा गांधी ने रायबरेली से जब मुंह मोड़ा
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि 1977 की चुनावी हार से इंदिरा गांधी का रायबरेली सीट से मोहभंग हो गया था. इसके चलते ही उन्होंने रायबरेली की जगह मेंडक सीट को सियासी अहमियत दी और उसके बाद उस तरह का लगाव उनका नहीं रह गया था. इसके जरिए रायबरेली के लोगों को एक मैसेज देने का मकसद था.
इंदिरा गांधी की हार के बाद गांधी परिवार से सोनिया गांधी 2004 में चुनाव लड़ने आईं. इस तरह से 43 सालों तक गांधी परिवार से कोई भी रायबरेली सीट से चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन गांधी परिवार के रिलेशन वाले अरुण नेहरू और शीला कौल रायबरेली से चुनाव लड़कर सांसद पहुंचे थे. वहीं, बगल की अमेठी लोकसभा सीट से संजय गांधी और उसके बाद राजीव गांधी चुनाव लड़ते रहे और जीत दर्ज करते रहे, लेकिन 2019 में राहुल की हार के बाद अमेठी को लेकर भी गांधी परिवार का रुख उसी तरह से दिख रहा है.
अमेठी सीट से गांधी परिवार का लगाव 1977 से हुआ
वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि रायबरेली और अमेठी लोकसभा के साथ गांधी परिवार के लगाव में काफी अंतर है. रायबरेली के साथ नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता चार पीढ़ियों का है और वो आजादी से पहले का है जबकि अमेठी सीट से गांधी परिवार का लगाव 1977 में हुआ है जब संजय गांधी चुनाव लड़े. हालांकि, 1977 में संजय गांधी चुनाव हार गए, लेकिन उसके बाद भी साल 1980 में जीतकर सांसद पहुंचे जबकि इंदिरा गांधी 1980 में जीतकर उन्होंने रायबरेली को छोड़ दिया.
फिरोज नकवी कहते हैं कि 2024 के चुनाव में गांधी परिवार से कई सदस्यों के चुनाव लड़ने की स्थिति नहीं बन रही है. सोनिया गांधी अस्वस्थ हैं और उनके चुनाव लड़ने के उम्मीद नहीं दिख रही है जबकि राहुल गांधी भी कानूनी मामले में फंसे हुए हैं, जिसके चलते उनके चुनाव लड़ने पर भी सस्पेंस बना हुआ है. प्रियंका गांधी ही बच रही हैं, जिनके चुनाव लड़ने की संभावना है. ऐसे में प्रियंका गांधी को सीट चुनने की बात आएगी तो मुझे लगता है कि वो अमेठी और वायनाड की जगह रायबरेली को चुनेगी, क्योंकि रायबरेली के साथ नेहरू-गांधी परिवार के चार पीढ़ियों का नाता है.
रायबरेली से गांधी परिवार का 4 पीढ़ियों का नाता
2024 के लोकसभा चुनाव के सारे समीकरण को देखते हुए लगाता है कि गांधी परिवार जिस तरह से 1980 में रायबरेली से नाता तोड़ लिया था, उसी तरह से अमेठी सीट को 2024 में त्याग सकता है. इसके जरिए अमेठी के लोगों को सियासी संदेश देना का भी मकसद माना जा रहा है, क्योंकि गांधी परिवार के मन में अभी 2019 की हार के जख्म हरे हैं और वो अभी भरे नहीं हैं.
फिरोज नकवी कहते हैं कि रायबरेली सीट के साथ मोतीलाल नेहरू से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी का नाता जुड़ा हुआ है. आजादी से पूर्व किसान आंदोलन के दौरान 7 जनवरी 1921 को मोतीलाल नेहरू ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर जवाहर लाल नेहरू को भेजा था. ऐसे ही 8 अप्रैल 1930 के यूपी में दांडी यात्रा के लिए रायबरेली को चुना गया और उस समय जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष थे, उन्होंने अपने पिता मोतीलाल नेहरू को रायबरेली भेजा था. आजादी के बाद पहला चुनाव हुआ तो नेहरु ने इलाहाबाद-फूलपुर सीट को नहीं छोड़ना चाहते थे, जिसके चलते फिरोज गांधी को रायबरेली सीट से चुनाव लड़ाया गया.
गांधी परिवार का अमेठी से रिश्ता
फिरोज गांधी के बाद रायबरेली से इंदिरा गांधी, लेकिन उनके छोड़ने के 43 साल बाद सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा और अभी तक लगातार सांसद हैं. हालांकि, सोनिया गांधी ने सियासत में कदम रखा तो रायबरेली को नहीं बल्कि अमेठी सीट को चुना था. 1999 में वो अमेठी से सांसद चुनी गईं और उसके बाद 2004 में राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट छोड़ दी. राहुल 2004 से लेकर 2014 लागातार तीन बार अमेठी से जीतकर सांसद पहुंचे, लेकिन 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों हार गए. ऐसे में अमेठी सीट पर गांधी परिवार के चुनाव लड़ने की संभावना बहुत की कम दिख रही है, जिसके चलते माना जा रहा है कि कांग्रेस अमेठी सीट को क्या त्याग सकती है?