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कांग्रेस से बीजेपी में आईं ज्योति मिर्धा क्या बदल पाएंगी सियासी समीकरण?

Jitendra Kumar by Jitendra Kumar
24/09/23
in राज्य, राष्ट्रीय
कांग्रेस से बीजेपी में आईं ज्योति मिर्धा क्या बदल पाएंगी सियासी समीकरण?
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नई दिल्ली: राजस्थान सहित पांच राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. ऐसे में बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों ही पार्टियां इस चुनाव में अपनी ताकत झोंक रही हैं. ज्यादा  से ज्यादा सीटें पाने का गणित कुछ ऐसा खेला जा रहा है कि हर कद्दावर नेता को पार्टियां अपनी ओर खींचने में लगी हैं.

राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है. कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा ने कुछ दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन की है. जिसके बाद बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक से अलग ही सियासी समीकरण निकलकर सामने आ रहे हैं. ज्योति मिर्धा 2024 में नागौर से बीजेपी की लोकसभा प्रत्याशी मानी जा रही हैं.

नाथूराम मिर्धा राजस्थान में रसूखदार नेताओं में थे. ऐसे में जब ज्योति चुनाव में उतरीं तो हर किसी की नजर उन्हीं पर थी. साल 2009 में ज्योति ने कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीत था और 2014 तक वो नागौर से कांग्रेस की सांसद रहीं. हालांकि उसके बाद वो 2014 और 2019 चुनाव हार गईं.

दो चुनाव हारने के बाद अब ज्योति ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. अब बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि ज्योति के आने पार्टी विधानसभा चुनाव में कम से कम 7 से 10 सीटें जीत सकती है.

ज्योति मिर्धा की विरासत का असर

ज्योति के दादा नाथूराम मिर्धा 6 बार सांसद और 4 बार विधायक रहे. इसके अलावा नाथूराम केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उनकी अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ थी. 1996 में उनका देहांत हो गया, लेकिन उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि उनके निधन के 14 साल बाद जब ज्योति मिर्धा ने चुनाव लड़ा तो नाथूराम मिर्धा की पोती होने के नाते उन्हें लोगों का भारी समर्थन मिला.

लेकिन 2014 में ज्योति की जीत का सिलसिला आगे नहीं बढ़ सका. साल 2009 से 2014 तक तो कांग्रेस से ज्योति सांसद रहीं, लेकिन 2014 और 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दोनों चुनावों  में ज्योति की जीत के लिए उनके दादा के नाम को भी भुनाने की कोशिश की गई और नारा दिया गया, ‘बाबा की पोती है, नागौर की ज्योति है’ लेकिन इस नारे का भी कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा.

दोनों ही चुनाव में ज्योति की टक्कर नागौर में RLP प्रत्याशी हनुमान बेनीवाल से हुई थी. बेनीवाल को बीजेपी का समर्थन मिला था. अब बेनीवाल के लिए बीजेपी का समर्थन पाना मुश्किल है. ऐसे में बीजेपी का दामन थामने के बाद ज्योति ने हनुमान बेनीवाल को उनके सामने चुनाव लड़ने की खुली चुनौती दी है.

ज्योति का मानना है पिछले दोनों ही चुनावों में हनुमान बेनीवाल की जीत इसलिए हुई क्योंकि उन्हें बीजेपी का समर्थन मिला था. अब 2024 लोकसभा चुनाव में ज्योति बीजेपी से चुनाव लड़ सकती हैं. हनुमान बेनीवाल और ज्योति के बीच लंबे समय से वर्चस्व की जंग चल रही है. इसे देखते हुए अब हनुमान बेनीवाल का बीजेपी से गठबंधन करना भी मुश्किल है. साथ ही ज्योति ये चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने से भी पीछे नहीं हटेंगी.

कैसे बीजेपी में शामिल हुई ज्योति बेनीवाल

ज्योति मिर्धा के बीजेपी में शामिल होने की कहानी की शुरुआत 14 मई 2023 को उस समय हुई, जब नागौर के मेड़ता में उनके दादा और किसान नेता नाथूराम मिर्धा की प्रतिमा का अनावरण उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा किया गया था. उस कार्यक्रम में मंच पर धनखड़ के साथ ज्योति मिर्धा, रिछपाल मिर्धा और राजस्थान सरकार के मंत्री लालचंद कटारिया भी मौजूद थे. ज्योति मिर्धा उपराष्ट्रपति के साथ ही दिल्ली गई थीं.

ज्योति से बीजेपी क्यों लगा रही 10 सीटों की उम्मीद

ज्योति मिर्धा के आने से बीजेपी 10 सीटों का फायदा नजर आ रहा है. खींवसर की सीट पर हनुमान बेनीवाल का दबदबा रहा है. इस बार खुद बेनीवाल के खींवसर से विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चाएं हैं. ऐसे में ज्योति मिर्धा के साथ बीजेपी ज्वाइन करने वाले उनके करीबी और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी सवाई सिंह को टिकट मिला तो फिर बेनीवाल और ज्योति मिर्धा की बीच आरपार की जंग देखने को मिलेगी. ज्योति मिर्धा के बीजेपी में शामिल होने से नागौर, राजसमंद व कुचामन डीडवाना जिले की विधानसभा और नागौर व राजसमंद की विधानसभा सीटों पर हो सकता है.

जाटों के प्रभाव वाली इन जिलों की 10 सीटों पर बीजेपी की ताकत बढ़ सकती है. इसके अलावा बीजेपी के नेताओं को हरियाणा की सीमा से जुड़ी झुंझुनू और चूरू सीट पर भी फायदा मिलने की उम्मीद है. ज्योति मिर्धा का ताल्लुक हरियाणा कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के परिवार से भी है. ज्योति मिर्धा की बहन श्वेता मिर्धा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा की पत्नी हैं.

वैसे ज्योति मिर्धा की सास कृष्णा गहलोत बीजेपी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं. दादा नाथूराम मिर्धा मारवाड़ में जाट समुदाय के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता रहे हैं. नाथूराम मिर्धा के निधन के बाद बीजेपी नेता भैरोंसिंह शेखावत ने उनके बेटे भानूप्रकाश मिर्धा को टिकट दिया था. वो बीजेपी से नागौर से सांसद बने थे.

अब बीजेपी के आला नेताओं को उम्मीद है कि मारवाड़ में ज्योति मिर्धा बीजेपी के जाट चेहरे की कमी को पूरा कर सकती हैं. साथ ही मारवाड़ में जाटों के प्रभाव वाली सीटों पर बीजेपी ज्योति मिर्धा से चुनाव प्रचार कराने का भी प्लान तैयार करेगी. महिला आरक्षण बिल लाने वाली बीजेपी राजस्थान में ज्योति मिर्धा को आगे लाकर उनके जाट समुदाय से युवा और महिला चेहरे के तौर पर सामने लाएगी.

जनता से जुड़ाव नहीं, कितना असर डाल पाएंगी ज्योति

हालांकि एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ज्योति मिर्धा से बीजेपी की उम्मीदें गलत हैं. उन्होंने कहा पिछले काफी समय से ज्योति आम जनता से दूर हैं और वो अपने कारपोरेट काम में ही व्यस्त रहती हैं. ऐसे में जनता का ज्योति से जुड़ाव बचा नहीं है. वहीं ज्योति ने 2009 के लोकसभा चुनाव में तो अपने दादा का नाम भुना लिया था लेकिन 2014 और 2019 में वो उनके नाम को भुना कर भी नहीं जीत पाईं. ऐसे में यदि बीजेपी उनसे उम्मीद लगा रही है तो वो पूरा होना मुश्किल है.

वहीं जब हमने इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार श्रीपाल शक्तावत से बातचीत कि तो उन्होंने कहा, “पश्चिमी राजस्थान में जाट और राजपूत की आपस में रंजिश रही है. इन दोनों को काटने का काम किया नाथूराम मिर्धा और कल्याण सिंह राजपूत ने,नाथूराम मिर्धा जाटों के बड़े नेता थे और कल्याण सिंह राजपूतों के बड़े नेता थे. लेकिन जब हनुमान बेनीवाल की राजनीति हुई तो वापस इन दोनों जातियों में टकराव की स्थिति देखी गई. ऐसे में ज्योति मिर्धा इस टकराव को दूर कर सकती हैं. साथ ही मिर्धा परिवार को लोग पसंद भी करते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “अब देखना ये होगा कि बीजेपी कालवी परिवार से किसे जोड़ पाती है. क्योंकि 1990 में नागौर और कालवी परिवार का जो गठबंधन हुआ था वो काफी प्रभावी रहा था और दोनों ही परिवार को लोग पसंद भी करते हैं. अगर काल्वी परिवार से किसी को जोड़ लिया जाए तो न सिर्फ नागौर बल्कि पूरे पश्चिमी राजस्थान में इसका असर देखने को मिल सकता है. वहीं हनुमान बेनीवाल जमीनी स्तर के नेता माने जाते हैं जो हर मौकों पर मौजूद रहते हैं. हनुमान बेनीवाल का उस तरह के नेता हैं जो एक समय नाथूराम मिर्धा माने जाते थे. लेकिन कालवी परिवार और मिर्धा परिवार एक होता है तो इसका असर जरुर होगा. हालांकि कालवी परिवार से अभी बीजेपी में कौन शामिल होने वाला है इसके पत्ते नहीं खुले हैं.”

बता दें, कल्याण सिंह कालवी केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री रहे थे. जिनके बेटे लोकेंद्र सिंह कालवी काफी जाने माने नेता रहे हैं. लोकेंद्र सिंह कालवी ने ही करणी सेना बनाई थी.अब उनके बेटे भवानी सिंह कालवी इंटरनेशनल पोलो प्लेयर हैं. ऐसे में पश्चिम में इस परिवार का प्रभाव ज्यादा होने से अगर इस परिवार का कोई सदस्य बीजेपी में शामिल हो जाता है तो इसका सीधा असर देखने को मिलेगा.

इसके अलावा इस बार होने वाले चुनाव पर बात करते हुए श्रीपाल शक्तावत ने कहा कि इस बार सचिन पायलट को इग्नोर करना कांग्रेस को भारी पड़ सकता है. वहीं जनता में विधायकों के प्रति भी नाराजगी है.

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