नई दिल्ली: भाजपा ने मोहन यादव के नाम और चेहरे के सहारे बिहार में लालू यादव के अभेद्य दुर्ग में सेंधमारी की कोशिश शुरू कर दी है. गुरुवार को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बिहार की राजधानी पटना में बिहार के यादवों में जोश भरा. बता दें कि बिहार की राजनीति के लिए आज का दिन अहम था. बीजेपी ने एमपी के सीएम मोहन यादव को बिहार दौरे पर बुलाया. पटना पहुंचे मोहन यादव का पटना एयरपोर्ट पर भाजपा के कार्यकर्ताओं ने गर्म जोशी से स्वागत किया. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पटना एयरपोर्ट से सीधे श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचे, वहां उनका अभिनंदन समारोह का आयोजन किया गया.
दरअसल ये सारी कवायद बिहार के 15 फीसदी यादव वोटबैंक को साधने की हो रही है. पटना में मोहन यादव ने बिहार के यादवों से आह्वान किया कि आप कृष्ण के वंशज हैं. उन्होंने अधर्मियों का नाश किया था और धर्म की रक्षा की थी. मोहन यादव ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मां सीता की जन्मस्थली पर आकर मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूं. फिर लोगों से नारा लगवाया… वृंदावन बिहारी लाल की जय.. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश और बिहार का रिश्ता हजारों साल पुराना है.
लालू से यादवों का क्या हो गया मोह भंग?
कृष्ण चेतना मंच के इस कार्यक्रम में पहुंचे लोगों ने कहा कि अब तक बिहार के यादव लालू यादव को अपना नेता मानते रहे हैं, लेकिन अब यादवों का लालू से मोह भंग हो गया है. मोहन यादव के आने से से स्थिति बदलेगी.
बिहार में यादव वोटरों की संख्या पर गौर करें तो यह सर्वाधिक वोटों वाली जाति है. कुछ महीने पहले बिहार में हुई जातीय सर्वे रिपोर्ट में भी साबित हुआ कि यादव सबसे ज्यादा संख्या में बिहार में हैं. वहीं, यादव वोटरों के रुझान पर गौर करें तो वर्ष 1990 से यादवों को लालू यादव की पार्टी का कोर वोट बैंक माना जाता है.
इसी यादव वोटों के सहारे लालू यादव अपनी सियासत को एम-वाई यानी मुस्लिम-यादव गठजोड़ के सहारे बिहार में आगे बढ़ाते रहे हैं. पिछले तीन दशक से ज्यादा में अमूमन सभी चुनावों में यह साबित हुआ है कि यादवों के सबसे बड़े नेता लालू यादव रहे हैं, लेकिन इसी वोटों में सेंधमारी करने पर अब भाजपा की योजना है.
राजद ने बीजेपी के दावे को किया खारिज
2005 से 2015 तक जब बिहार में लालू प्रसाद यादव की राजनीति डाक मंगाई हुई थी. उसे वक्त भी जो चुनाव हुए, उसमें यादव पूरी मजबूती के साथ लालू प्रसाद यादव के साथ खड़ा रहा. चाहे वह 2005 का बिहार विधानसभा का चुनाव हो या बाद में 2009 और 2010 का विधानसभा और लोकसभा चुनाव हो. हालाकि राजद इस बात को लेकर निश्चिंत है कि मोहन यादव आएं या कोई अन्य बिहार में लालू यादव और उनके यादव वोटबैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
भारतीय जनता पार्टी को पता है कि अगर बिहार में अकेले चुनाव लड़ना है, क्योंकि अब नीतीश कुमार भी बीजेपी के साथ नहीं हैं. ऐसे में 15% यादव वोट बैंक में बगैर सेंधमारी के लोकसभा या फिर विधानसभा चुनाव में बैतरणी पर करना बड़ी चुनौती होगी.
हालांकि इसके पहले भी बीजेपी ने लाल यादव के स्कोर वोट बैंक को तोड़ने की कई कोशिश की है. कभी नंद किशोर यादव के मार्फत कभी राम कृपाल यादव को लेकर तो कभी नित्यानंद राय को बिहार बीजेपी की कमान सौंप कर. लेकिन अभी तक कोई भी चुनाव ऐसा नहीं हुआ, जिसमें यादवों का कोई खास रुझान भाजपा की तरफ हुआ हो अब देखना यह है कि मोहन यादव को यादों का नेता बात कर बीजेपी बिहार में लाल यादव के वोट बैंक में कितनी सेंधमारी कर पाती है.