नई दिल्ली : बात 1999 की है। अप्रैल में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने पुरानी सरकार एक वोट से गिर गई थी। उसके बाद सोनिया गांधी कुछ विपक्षी नेताओं को साथ लेकर राष्ट्रपति के आर नारायणन से मिलने जा पहुंची थीं। इधर, बीजेपी ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर उनके खिलाफ राजनीतिक मुहिम छेड़ दी थी। कई विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को हवा दी थी। समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव ने भी तब बीजेपी का साथ दिया था।
अटलजी ने छेड़ दी थी बहस
आंध्र प्रदेश की एक चुनावी सभा में तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि विदेशी मूल के किसी व्यक्ति को सर्वोच्च पद पर बैठाने का मामला गंभीर मामला है और इस पर पूरे देश में बहस होनी चाहिए। उन्हीं की सरकार में उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा करार दिया था लेकिन तब के बीजेपी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने इस पर जनमत संग्रह कराने के सवाल पर कन्नी काट ली थी।
कांग्रेस के अंदर भी हो रहा था विरोध
कांग्रेस के अंदर भी कई नेता ऐसे थे जो सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर बीजेपी के सुर में सुर मिला रहे थे। शरद पवार उनमें प्रमुख थे। उनके साथ पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा और तारिक अनवर भी थे। जब पवार को लगा कि सोनिया गांधी पीएम बनने की रेस में हैं तो उन्होंने पार्टी फोरम में एक मांग रखी कि पार्टी एक प्रस्ताव पास करे कि सिर्फ भारत में जन्मा शख्स ही प्रधानमंत्री पद पर आसीन हो न कि कोई विदेशी मूल का नागरिक। इससे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खफा हो गईं और पार्टी ने तीनों नेताओं को छह साल के लिए बर्खास्त कर दिया।
शरद पवार ने बनाई अपनी नई पार्टी
कांग्रेस से निकाले जाने के बाद तीनों नेताओं ने मिलकर तब 25 मई 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी। बाद में 2012 में पीए संगमा ने राष्ट्रपति चुनाव में मतभेद के बाद पवार का साथ छोड़ दिया और अपनी अलग पार्टी बना ली। 2018 में राफेल मुद्दे पर पीएम नरेंद्र मोदी को शरद पवार द्वारा क्लीनचिट दिए जाने के विरोध में तारिक अनवर ने भी एनसीपी छोड़ दी और कांग्रेस में लौट आए।
पांच महीने बाद ही फिर से थामा हाथ
मई 1999 में अपनी पार्टी बनाने वाले शरद पवार ने अक्टूबर 1999 में महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और पांच साल बाद 2004 में जब कांग्रेस की अगुवाई में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार बनी तो शरद पवार खुद उसमें कृषि मंत्री बने थे। तब से पवार कांग्रेस के सहयोगी हैं। 2019 में फिर से उनके नेतृत्व में कांग्रेस,एनसीपी और शिवसेना की सरकार बनी थी।
अडाणी पर अलग सुर
अभी हाल ही में एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेता राहुल गांधी से अपना अलग स्टैंड दिखाते हुए कहा कि खास उद्योगपतियों को निशाना बनाया जा रहा है। पवार ने ये भी कहा कि इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच की मांग व्यर्थ है।
मोदी की डिग्री और सावरकर पर भी दिया झटका
शरद पवार का यह बयान तब आया है, जब 19 विपक्षी पार्टियां अडाणी मुद्दे पर सरकार को संसद से लेकर सड़क तक जमकर घेर रही थीं। विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा रही थीं। पवार ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर भी सवाल उठाए हैं। पवार ने पीएम मोदी का बचाव करते हुए उनकी डिग्री को भी कोई राजनीतिक मुद्दा मानने से इनकार कर दिया है। कुछ दिनों पहले ही पवार ने सावरकर मामले पर भी राहुल गांधी को चुप रहने की नसीहत दी थी और कांग्रेस की तरफ से उस पर चुप्पी भी साध ली गई थी।
क्या 24 साल पुराना इतिहास दोहराएंगे पवार?
ऐसे वक्त में जब पवार ने सावरकर, अडाणी और मोदी मामले में भी कांग्रेस से अलग स्टैंड ले रखा है, तब फिर से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या 24 साल पहले की तरह शरद पवार फिर से बीजेपी के बने बनाए रास्ते पर चल रहे हैं और क्या वह बीजेपी के एजेंडे पर फिर से कांग्रेस का हाथ छोड़ देंगे? क्या फिर से गांधी परिवार के एक सदस्य के पीएम बनने की राह में रोड़ा अटकाएंगे?