नई दिल्ली: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा राज्य के युवाओं के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण की गारंटी देने वाले हरियाणा सरकार के कानून को रद्द कर दिया है. अब हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की योजना बना रही है. वहीं इसके बाद अब विपक्षी दलों ने इसे लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. विपक्ष ने राज्य सरकार पर कोर्ट में मामले को मजबूती से नहीं उठाने का आरोप लगाया है.
शनिवार को उपमुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला ने कहा कि रोजगार कानून पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी. उन्होंने एक बयान में कहा कि हम हाईकोर्ट के फैसले की जांच कर रहे हैं, जिसके बाद ही सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. हरियाणा के युवाओं को रोजगार देने और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए रोजगार कानून बहुत महत्वपूर्ण है. सरकार ने उद्योगपतियों की सहमति और परामर्श से ही कानून बनाया है.
विधानसभा चुनाव में किया गया था वादा
निजी क्षेत्र के रोजगार में अधिवास कोटा 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी द्वारा किया गया एक चुनावी वादा था. वहीं अगले साल होने वाले संसदीय और राज्य चुनावों से पहले आने वाले हाईकोर्ट के फैसले को राज्य में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है.
कांग्रेस ने कहा, सरकार ने नहीं की पैरवी
कांग्रेस राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने बीजेपी-जेजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार ने कोर्ट में मामले की मजबूती से पैरवी नहीं की. बीजेपी-जेजेपी सरकार का हरियाणा के युवाओं को निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण देने का कभी कोई इरादा नहीं था. यह सब महज एक दिखावा था. उन्होंने कहा कि भाजपा-जजपा ऐसी सरकार बनी जिसने हरियाणा के युवाओं को देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर दी.
क्या था कानून?
वहीं इंडियन नेशनल लोकदल के नेता और विधायक अभय सिंह ने कहा कि जेजेपी ने राज्य के युवाओं को धोखा दिया है. उन्होंने कहा कि पार्टी को हरियाणा की जनता से माफी मांगनी चाहिए. हरियाणा राज्य स्थानीय अभ्यर्थियों का रोजगार अधिनियम 2020, जो पिछले साल 15 जनवरी को लागू हुआ ने राज्य में नियोक्ताओं के लिए प्रति माह 30,000 रुपए से कम वेतन वाली 75% नौकरियां अधिवासित निवासियों के लिए आरक्षित करना अनिवार्य बना दिया था.