“वो पत्थर ईश्वर ही था”
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“हाँ वो पत्थर ही था
मात्र पत्थर…
जब तक
सहनशक्ति की अपनी
परीक्षा में
छैनी हथौड़े की आवाज़
इस पार से उस पार
उतारने में
टूटकर बिखरने औऱ
बिखऱाब को समेटने में
सफ़ल न हुआ हो
वो,
पत्थरों में ही तो गिना गया .…
माद्दा था उसमें
छैनी की चुभन
और
हथौड़े की धमक
बर्दाश्त करने का …
बिखऱाब को साधता
आस्था की तकनीकि से
जूझता पत्थर से मूर्ति में तब्दील
होकर
मन्दिरो में देवता हुआ
और…फिर
जिसमें बर्दाश्त का माद्दा नहीं
वो आज भी
मात्र पत्थर ही तो हैं…
जानते हो पत्थर से देवता तक का सफ़र
माद्दा, बर्दाश्त,हिम्मत,हौंसला, सूझ-बूझ,
तराशने का तकनीकि हुनर
और…फ़िर
कतई आसान भी ना था
पत्थर से ईश्वर बनना …
सोचता हूँ
फ़िर,
कैसे आसान होगा
आदमी से इंसा होना …
माद्दा, बर्दाश्त, हिम्मत, हौंसला,सूझ-बूझ
तकनीकि हुनर तराशने का
ख़ुद में इंसानियत लाने तक …
ख़ुदा के बंदे कहलाने तक …।
–प्रज्ञा शालिनी–
BHOPAL