अजय पाठक
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय असंगठित कामगार संघ
करोना काल ने तो मानवता और खास तौर पर मजदूरों के लिए तो करोना महामारी से भी बड़ी महामारी भुखमरी और बच्चों के पेट भरने की विक्राल संकट पैदा हो गया है, उम्मीद की किरण सिर्फ़ और सिर्फ़ देश के प्रधानमंत्री जी से लगी हुई है जिस प्रकार से प्रधानमंत्री जी ने पीडीएफ सिस्टम को प्रभावी तरीकों से लागू करने में तत्परता दिखाई उससे एक उम्मीद पैदा हुईं है और आशा है कि इस संकट काल से मजदूरों को अवश्य राहत देंगे l
जिस प्रकार से गृह मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर देश में फंसे हुए मज़दूरों को अपने घरों तक ले जाने का काम कर रहे हैं वो भी सराहनीय है l अब मजदूरों की पुरी उम्मीद देश की वर्तमान सरकार से हैं कि कब तक उन्हें कोई काम नहीं मिल जाता तब तक भोजन के लिए कच्चा अनाज और दवा के लिए उन्हें हर महीने कुछ नगद राशि देने पर सरकार को विचार करना चाहिए l अजय पाठक ने बताया की भारत सहित दुनिया में किस प्रकार मजदूरों का शोषण होता है, पाठक ने पुरे विस्तार से इसका विवरण किया है l
मजदूरों का शोषण मानवता का उपहास
हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मई महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस को ‘मई दिवस‘ भी कहकर बुलाया जाता है।
अमेरिका में 1886 में जब मजदूर संगठनों द्वारा एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे करने के लिए हड़ताल की जा रही थी तो इस हड़ताल के दौरान एक अज्ञात शख्स ने शिकागो के हेय मार्केट में बम फोड़ दिया l इसी दौरान पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दीं जिसमें 7 मजदूरों की मौत हो गई। इस घटना के कुछ समय बाद ही अमेरिका ने मजदूरों के एक शिफ्ट में काम करने की अधिकतम सीमा 8 घंटे निश्चित कर दी थी। तभी से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस 1 मई को मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत शिकागो में ही 1886 से की गई थी।
मौजूदा समय में भारत सहित विश्व के अधिकतर देशों में मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून बना हुआ है। अगर भारत की बात की जाए तो भारत में मजदूर दिवस के मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 से हुई।
देश के निर्माण में मजदूरों की बहुमूल्य भूमिका
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस’ लाखों मजदूरों के परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का दिवस है। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है।
लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के 8 घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से 12 घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण है। आज जरूरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए।
कम मजदूरी एक बहुत बड़ी समस्या
भारत देश में मजदूरों की मजदूरी के बारे में बात की जाए तो यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है। आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्टरियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम मजदूरी पकड़ा दी जाती है जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है। पैसों के अभाव से मजदूर के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है।
भारत में अशिक्षा का एक कारण मजदूरों को कम मजदूरी दिया जाना भी है। आज भी देश में ऐसे मजदूर हैं, जो 10000-15000 रु. की मासिक मजदूरी पर काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार से मानवता का उपहास है। बेशक, इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किए हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोई कार्रवाई की जाती है।
मजदूरों के लिए बनें कानून
आज जरूरत है कि इस महंगाई के समय में सरकारों को प्राइवेट कंपनियों, फैक्टरियों और अन्य रोजगार देने वाले माध्यमों के लिए एक कानून बनाना चाहिए जिसमें मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी तय की जानी चाहिए। मजदूरी इतनी होनी चाहिए कि जिससे मजदूर के परिवार को भूखा न रहना पड़े और न ही मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़े।
आज भी हमारे भारत देश में लाखों लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जाती है। जब किसी व्यक्ति को बिना मजदूरी या नाममात्र पारिश्रमिक के मजदूरी करने के लिए बाध्य किया जाता है या ऐसी मजदूरी कराई जाती है तो वह ‘बंधुआ मजदूरी’ कहलाती है। अगर देश में कहीं भी बंधुआ मजदूरी कराई जाती है तो वह सीधे-सीधे बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का उल्लंघन होगा। यह कानून भारत के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन आज भी जनसंख्या के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को नहीं रोका जा सका है।
आज भी देश में कमजोर वर्गों का बंधुआ मजदूरी के जरिए शोषण किया जाता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 23 का पूर्णत: उल्लंघन है। संविधान की इस धारा के तहत भारत के प्रत्येक नागरिक को शोषण और अन्याय के खिलाफ अधिकार दिया गया है। लेकिन आज भी देश में कुछ पैसों या नाममात्र के गेहूं, चावल या अन्य खाने के सामान के लिए बंधुआ मजदूरी कराई जाती है, जो कि अमानवीय है। आज जरूरत इस बात की है कि समाज और सरकार को मिलकर बंधुआ मजदूरी जैसी अमानवीयता को रोकने का सामूहिक प्रयास करना चाहिए।
मजदूरी में आज भी लैंगिक भेदभाव
आज भी देश में मजदूरी में लैंगिक भेदभाव आम बात है। फैक्टरियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है। बेशक, महिला या पुरुष फैक्टरियों में समान काम कर रहे हों लेकिन बहुत सी जगह आज भी महिलाओं को समान कार्य हेतु समान वेतन नहीं दिया जाता है। फैक्टरियों में महिलाओं से उनकी क्षमता से अधिक कार्य कराया जाता है।
आज भी देश की बहुत सारी फैक्टरियों में महिलाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। महिलाओं से भी 10-12 घंटे तक काम कराया जाता है। आज जरूरत है कि सभी उद्योगों को लैंगिक भेदभाव से बचना चाहिए और महिला श्रमिक से संबंधित कानूनों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इसके साथ ही सभी राज्य सरकारों को महिला श्रमिक से संबंधित कानूनों को कड़ाई से लागू करने के लिए सभी उद्योगों को निर्देशित करना चाहिए। अगर कोई इन कानूनों का उल्लंघन करे तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
बालश्रम को मजबूर है छोटे-छोटे गरीब बच्चे
आज भारत देश में छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर बालश्रम हेतु मजबूर हैं। बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वे मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है। बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती है, जो कि संविधान के विरुद्ध है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है।
बालश्रम की समस्या भारत में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में विराजमान है जिसका समाधान खोजना जरूरी है। भारत में 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के अनुसार बालश्रम तकनीकी सलाहकार समिति नियुक्त की गई। इस समिति की सिफारिश के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है।
भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है। संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल के कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्टरी या खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और न ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्त किया जाएगा।
किशोर मजबूरों के लिए तय हो कार्यावधि
फैक्टरी कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। 15 से 18 वर्ष तक के किशोर किसी फैक्टरी में तभी नियुक्त किए जा सकते हैं, जब उनके पास किसी अधिकृत चिकित्सक का फिटनेस प्रमाण पत्र हो। इस कानून में 14 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए हर दिन 4.30 घंटे की कार्यावधि तय की गई है और रात में उनके काम करने पर प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी इतने कड़े कानून होने के बाद भी बच्चों से होटलों, कारखानों, दुकानों इत्यादि में दिन-रात कार्य कराया जाता हैं और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है जिससे मासूम बच्चों का बचपन पूर्ण रूप से प्रभावित होता है। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा, जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुंच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिए समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे।
बाल मजदूरी का करें विरोध
आज देश के प्रत्येक नागरिक को बाल मजदूरी का उन्मूलन करने की जरूरत है और देश के किसी भी हिस्से में कोई भी बच्चा बाल श्रमिक दिखे, तो देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह बाल मजदूरी का विरोध करे। इसके साथ ही बड़ी उम्र के मजदूरों को कोई भी बाल मजदूर दिखे तो उन्हें खुद बाल मजदूरी रोकने के लिए आगे आना चाहिए और बाल मजदूरी का विरोध करना चाहिए। अगर देश से बाल मजदूरी रुकेगी तो मजदूर दिवस मनाना भी तभी सार्थक होगा।
‘मजदूर दिवस’ के अवसर पर संपूर्ण राष्ट्र और समाज को राष्ट्र और समाज की प्रगति, समृद्धि तथा खुशहाली में दिए गए श्रमिकों के योगदान को नमन करना चाहिए। देश के उत्पादन में वृद्धि और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो उच्च मानक हासिल किए गए हैं, वे हमारे श्रमिकों के अथक प्रयासों का ही नतीजा हैं। इसलिए राष्ट्र की प्रगति में अपने श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानकर सभी देशवासियों को उसकी सराहना करनी चाहिए। इसके साथ ही मजदूर दिवस के अवसर पर देश के विकास और निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाने वाले लाखों मजदूरों के कठिन परिश्रम, दृढ़ निश्चय और निष्ठा का सम्मान करना चाहिए और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए संपूर्ण राष्ट्र और समाज को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
ये लेखक के अपने निजी विचार है l