अजय पाठक
राष्ट्रीय अध्यक्ष
राष्ट्रीय असंगठित कामगार संघ
कल महाराष्ट्र के औरंगाबाद का रेल हादसा जिंदगी पटरी पर आने से पहले मौत पटरी पर आ गई का जो हादसा हुआ है वह बहुत ही हृदय विदारक और मन को विचलित करने वाला है ईश्वर उस दिवंगत आत्माओं को अपने श्री चरणों में जगह दे यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो हमारे देश के निर्माता हैं जिनकी वजह से हम अपने घरों में शांति और चैन के साथ बैठते हैं जो जीवन भर अपने खून की एक-एक बूंद दे कर के बड़ी बड़ी बिल्डिंग इन्फ्राट्रक्चर को खड़ा करते हैं जब मुसीबत का समय आता है तो सबसे ज्यादा उपेक्षित उन्हें देश में होना पड़ता है जबकि इस देश को बनाने में सबसे बड़ा योगदान उन्हीं प्रवासी मजदूरों का है l
अपनी रोजी-रोटी की तलाश में शहर शहर भटकने वाले अपने गांव अपने मां अपने बाप अपने परिवार को छोड़कर के जो बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ा करते हैं बड़े-बड़े इन्फ्राट्रक्चर खड़ा करते हैं जैसे ही इस तरह का काल जब भी आया है इतिहास में सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना इन्हीं मजदूर वर्ग को करना पड़ता है यह श्रमिक और इन श्रमिकों की आत्माएं वर्तमान सरकार जिसकी भी हो सेंटर और राज्य सरकारें इनको कभी इनकी आत्माएं माफ नहीं करेंगी ना मजदूर वर्ग इनको कभी माफ करेगा पूरी योजना ना बना करके जिस तरह से इनको जलील किया गया और रास्तों पर छोड़ दिया गया मरने के लिए यह मानवता की हत्या है इस मानवता की हत्या के लिए ईश्वर कभी माफ नहीं करेगा इन लोगों को यह लोगों को इस बात का जरा सा भी दर्द नहीं है किस तरह की घटनाएं कैसे हो गई कैसे लोग वहां से निकले और पटरी पर चलते गए और आप सोचिए क्यों इतनी गहरी निद्रा में सोए थे ट्रेन की आवाज भी उनके कानों को नहीं उठा पाई उनके कानों को नहीं भेद पाई और उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी गई l
उन परिवारों के बारे में सचों उनके बच्चे उनके मां-बाप उनकी पत्नी उनकी बहनें कितने अरमान लेकर के शहरों की तरफ चले थे और बदले में उन्हें क्या मिला यह सोचने वाली बात है इस तरह की हृदय विदारक घटना मन को विचलित करने वाली है सरकारों की संवेदनहिनता इससे साफ झलकती है लोग अपने फाइव स्टार घरों में सरकारें अपने फाइव स्टार केविनों में बैठी हुई हैं और वहां से सरकार बाहर निकलने का नाम नहीं लेती क्या बोले क्या ना बोले कुछ समझ में नहीं आता है जिस स्थिति में मजदूरों को छोड़ा गया उसके लिए तो कोई शब्द ही नहीं है इससे सरकार को यह सबक लेना चाहिए किसी भी मजदूर को रोड पर चलने नहीं देना चाहिए नहीं देना चाहिए का मतलब यह है कि आप उन की समुचित व्यवस्था करो जो लोग अपने गांव जाना चाहते हैं उनको तत्काल प्रभाव से सारे काम छोड़ कर के पहले उनको उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाया जाए आप विश्वास पैदा करिए कि हम आपको आपके गांव तक सुरक्षित पहुंचाएंगे आपके घर तक सुरक्षित पहुंचाएंगेआपको यह सरकारें राज्य सरकारें और केंद्र सरकारें यह मजदूरों के अंदर श्रमिकों भाइयों के अंदर यह विश्वास पैदा नहीं कर पाई कि हम आपको आपके घरों तक सुरक्षित पहुंच आएंगे सबसे बड़ी दुर्भाग्य की बात यह है कि सेंट्रल गवर्नमेंट और स्टेट गवर्नमेंट का कोई तालमेल ही नहीं दिखता है आखिर यह अगर कोआर्डिनेशन रहता तो इतनी ह्रदय विदारक घटना किस प्रकार से होती चलते चलते थक गए थे l
कल्पना 2000 किलोमीटर पैदल चलकर अपने घरों की तरफ जा रहे हैं धिक्कार है ऐसी सरकारों पर धिक्कार है ऐसे शासन चलाने वाले लोगों पर जिनको अपने लोगों की चिंता नहीं है सिर्फ अपनी चिंता है इन सरकारों को इस लेबर क्लास के लोगों की श्रमिकों की बिल्कुल चिंता नहीं है यह साबित होता है इस घटना से इनको सिर्फ अपनी चिंताएं हैं कि हम कैसे जिंदा रहेंगे हमें कुछ ना हो जाए मैं हाथ जोड़कर इन सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूं विनती करता हूं कि आप तत्काल प्रभाव से ऐसी व्यवस्था तुरंत की तुरंत करिए जिससे इस तरह की दुर्घटना दोबारा ना हो पाए क्या जवाब देगी सरकार उनके परिवारों को आप उनको 10:लाख ₹500000 देकर के उनके जीवन का मूल्य लगा रहे हैं किस तरह की संवेदनहिनता रही होगी किस तरह के अफसर हैं जिनको कुछ दिखता नहीं है मैं क्या क्या शब्द बोलूं क्या क्या कहूं मेरे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है बूढ़े मां बाप की आंखें पथराई होंगे उन छोटे-छोटे बच्चों को अपने बाप के आने का इंतजार होगा बहनों को अपनी शादी का इंतजार होगा कि भाई कमा कर आएगा तो मेरी शादी करेगा उन पत्नियों को अपने सुहाग सुहाग उजड़ने का किस तरह से क्या दर्द होता है किसको सुनाएंगी किस तरह की वेदना होंगी उसका शब्दों में वर्णन करना बहुत कठिन है बहुत कठिन है यह हमेशा से होता आया है सरकारों ने दावा करती हैं कि हम श्रमिकों के लिए सब कुछ कर रहे हैं लेकिन हृदय विदारक घटना जो घटी है बीच राह में सफर का और एक चीज और बता दो तालाबंदी में अब तक पैदल अपने गांव को चलने वाले लोगों में 73 मजदूर रास्ते में दम तोड़ चुके हैं फिर भी सरकार नहीं जाग रही हैं फिर भी सरकारों की आंख काम सब बंद है रोज स्टेटमेंट देते हैं कि हम मजदूरों के लिए के लिए यह कर रहे हैं वह कर रही थी ट्रेनी चलाकर आखिर उनको अपने घरों तक क्यों नहीं पहुंच पा रही हैं क्यों इतनी संवेदनहीनता है सरकारों में l
मैं सरकार से विनती और अनुरोध करना चाहता हूं आगे से ऐसी दुर्घटनाएं ना हो इस पर पूरी तत्परता और ईमानदारी से काम करिए चाहे भारत सरकार हो या स्टेट की सरकार हो l