तुम मुझे मुक्त कर दो
पिछले कुछ दिनों से
वो हर रात को
मेरे सपने में चली आती है
बदहवास सी
बिखरे हुए बाल,
आंसुओं से भरी लाल आँखें
कभी रोती है ,
गिड़गिड़ाती है ,
चीखती है ,चिल्लाती है
डराती है मुझ को
बार बार बस
एक बात
सुनो !!!!
तुम
अपनी कलम से
मेरी बदनसीबी
कागज पर उकेर कर
तुम
मुझे मुक्त कर दो “
मैं ना तो जीने में ओर ना मरने में
तुम
बस अब मुझे मुक्त कर दो
मैं
घबरा कर उठ जाती हूँ
आधी रात को
पसीने से तरबतर मेरा शरीर
भय से सूखता मेरा हलक
सो नहीं पाती हूँ फिर मैं
कौन थी वो ????
किस को उकेरू मैं अपनी कलम से ?????
क्या वो जिसे जला कर मारा गया था ?
या वो जिस पर तेज़ाब फेंका गया था ?
या वो
जिस का गला घोंटा गया था ?
या फिर जिस का
बलात्कार कर के पेड़ पर लटकाया गया था ?
कौन थी वो ?
जो खानदान की इज्जत के लिए
मरवायी गयी थी ?
या वो
जो जादू टोने की बलि चढ़ गयी ?
कहीं ये वो तो नहीं
जिस के पति ने बेटा ना दे पाने पर
धकेला था अपने घर से ?
या फिर वो
जिसे सौत के लिए अपनी जान देनी पड़ी थी ?
ये वो तो नहीं थी
जिसे बहका फुसला कर
बेचा गया था ‘कोठे ‘ पर ?
शायद वो भी हो सकती है
जो कभी पैदा भी नहीं होने दी गयी थी |
कौन …कौन …कौन
आखिर कौन थी वो ?
मैं सोचती रहती हूँ दिन भर
रात के आने से डरने लगती हूँ ,
डरती हूँ ,
उस का सामना करने से |
सोचती हूँ अगली बार
हिम्मत कर के ,
पूछूंगी उस से ही |
लेकिन आज ,
अभी अभी ,
मुझे ये ख्याल आया है |
ये प्रश्न जरूरी नहीं है मेरे लिए ,
कि वो कौन थी ?
मेरा दर्द तो ये है कि ,
क्या मेरे शब्द उतार पाएंगे
उस के दर्द को ?
क्या मेरी कलम न्याय कर पाएगी
उस की व्यथा के साथ ?
क्या मैं कभी
उस के सच उतार पाऊँगी
कागज़ के पन्नो पर ?
क्या सिर्फ शब्दों में उतर कर
वो
मुक्त हो जाएगी ?
या फिर
कल कोई और
मेरे सपने में आकर
ऐसे ही फिर से
रोयगी ,गिड़गिड़ाएगी ?
मुझे डराएगी ?
ओर फिर यही माँग करेगी
कि
मैं उसे मुक्त कर दूँ ।
मधु गजाधर, मॉरिशस
madhu.gujadhur@gmail.com