नई दिल्ली: भारत में अन्य देशों की तुलना में युवाओं में आत्महत्या के मामले कहीं अधिक हैं. यह बात एक्सपर्ट्स ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस के मौके पर कही. हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है. जिसका उद्देश्य आत्महत्या के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इससे जुड़े कलंक से लड़ना है. इस साल का विषय “आत्महत्या पर चर्चा का नजरिया बदलना” है.
NCRB के आंकड़ों ने चौंकाया
एक अनुमान के अनुसार भारत में आत्महत्या किशोरावस्था के अंतिम चरण (15-19 वर्ष) के आयु समूह में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या के कुल मामलों में से 40 प्रतिशत से अधिक मामले 30 वर्ष से कम उम्र के युवा वयस्कों के हैं.
रोज 160 युवा कर रहे आत्महत्या
एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर नंद कुमार ने कहा, “भारत में युवाओं के बीच आत्महत्या की स्थिति बेहद गंभीर है. भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या वैश्विक औसत की तुलना में लगभग दोगुनी है. प्रतिदिन लगभग 160 युवा भारत में आत्महत्या करते हैं.” उन्होंने आगे बताया, “कुछ सामान्य कारण जो आत्महत्या की प्रवृत्ति को जन्म देते हैं, उनमें तनावपूर्ण पारिवारिक वातावरण, अस्थिर भावनात्मक स्वास्थ्य, नशे की लत, असफल रिश्ते, दोस्तों के बीच कमजोर संबंध, और अकेलापन शामिल हैं.”
2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की
NCRB के आंकड़ों के अनुसार, 2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की. मनोचिकित्सक और LiveLoveLaugh की चेयरपर्सन, डॉ. श्याम भट्ट ने कहा, “आत्महत्या, जो 15 से 39 वर्ष के व्यक्तियों में मृत्यु का प्रमुख कारण है, हमारे देश और वैश्विक स्तर पर सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकटों में से एक है.” मनोचिकित्सक और मनस्थली की संस्थापक-निदेशक, डॉ. ज्योति कपूर ने बताया कि सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य संकट का समाधान करने और आत्महत्या को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम और किरण हेल्पलाइन जैसी पहल शुरू की हैं.
जागरूकता की जरूरत
उन्होंने कहा, “हालांकि, आत्महत्या दर को कम करने के लिए अधिक जागरूकता, देखभाल तक पहुंच और अंतर्निहित सामाजिक-आर्थिक मुद्दों का समाधान आवश्यक है. हमें आत्महत्या के प्रति नजरिया बदलने की भी जरूरत है ताकि मानसिक स्वास्थ्य संघर्षों के बारे में खुले, सहानुभूतिपूर्ण वार्तालाप किए जा सकें जो कलंक को तोड़ सकें.”
भावनात्मक चुनौतियों से जूझ रहे युवा
विशेषज्ञों ने आत्महत्या को रोकने के लिए समाज की सामूहिक भागीदारी पर जोर दिया और कहा कि जो लोग भावनात्मक चुनौतियों से जूझ रहे हैं, उन्हें समर्थन तक आसान पहुंच की जरूरत है. जिसमें किसी प्रकार की शर्मिंदगी या कलंक का सामना न करना पड़े. प्रोफेसर कुमार ने कहा कि प्रभावी आत्महत्या रोकथाम रणनीति में उन कारकों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो आत्महत्या के जोखिम वाले व्यक्ति की पहचान से परे हों. उन्होंने कहा, “नीति में सामाजिक और भावनात्मक जुड़ाव, शारीरिक और भावनात्मक गतिविधियों और माइंडफुलनेस को बढ़ाने के लिए विभिन्न हस्तक्षेपों पर जोर देना चाहिए.”