–सभी समस्या का हल स्वयं में है–
इस संसार में प्रत्येक मनुष्य के पास जब विकट समस्या आती है ,तब समस्या अकेले नहीं आती है ,समस्या और समाधान दोनों साथ आते हैं, इसी प्रकार से सुर और असुर, कहीं बाहर नहीं रहते, दोनों अंतःकरण में रहते हैं, एकसाथ रहते हैं, सतत संघर्ष में रहते हैं, कभी इनका पलड़ा भारी हो जाता है, कभी उनका। हम समस्या के इतनी अधिक गहराई में चले जाते हैं कि हमारे पास समस्या का समाधान होते हुये भी ध्यान नही दे पाते हैं ऐसा एक दो के पास नही प्रायः सभी के साथ होता है। समस्या से घिर जाने पर हमारी मानसिक संतुलन बिगड़ जाती है, उस समय हम प्रकृति रूपी देवता से गुहार लगाते हैं, सायद मेरी पुकार उस के कानों में पड़ जाये और मेरी समस्या का निदान पलक झपकते हो जाये ,लेकिन ईश्वर ऐसा क्यों करे ,इस धरा पर असंख्य प्राणी रहते हैं, कुछ मनुष्य पर आधारित ,कुछ स्वयं पर ,,, मनुष्य जन्म से स्वार्थी तत्वों से घिर जाता है ,,,,स्वयं पर निर्भर न होकर ,,,दूसरे की और देखता है ,,,,
राम चत्रित मानस के हवाले से देखे तो जिन्हें पूरा जगत मनुष्य रूप में ईश्वर का रूप मानता है जो पूज्यनीय योग्य है,,, उनकी समस्या मनुष्य से कम नहीं थी ,,, कुछ लोग आप की समस्या जानकर आश्चर्य होते हैं ,,,,कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो आप की समस्या में गहरी रुचि दिखाने लगते हैं और अंदर ही अंदर खुश होते हैं कि आप समस्या से घिरे हुए हैं ,,,कुछ ऐसे है जिन्हें आप की समस्या से कोई लेना देना नही हैं,,,कुछ ऐसे होते हैं कि आप की समस्या को। देखते हैं और समझते हैं जब आप को जानेंगे नही ,,,,सुनेंगे नही ,,,,तब चाह का भी नही वो निदान नही कर सकते हैं ,,,,जैसे सीताहरण हो रहा था, हनुमानजी और सुग्रीव ने देखा, क्या किया? कुछ नहीं। सुग्रीव बालि से रिट रहा था, हनुमानजी साथ ही थे, कुछ किया? सुग्रीव तो भागा, हनुमानजी भी साथ ही चल दिए। जबतक रामजी न मिले तबतक कुछ नहीं किया। हमारे समस्या के समाधान का केंद्र बिंदु हम खुद हैं,,,,,हम मनुष्य को इतना संघर्ष वान एवं धैर्यवान होना चाहिये कि हम विकट समस्या में हो फिर भी स्वयं को मजबूती के साथ समस्या का सामना करें। अपनी व्यथा दुसरो को न बता कर ,,,स्वयं में निदान खोजना चाहिये।
–अजय प्रताप तिवारी–