नई दिल्ली: देश की वायुसेना को एमआई-26 हेलीकॉप्टरों की मदद फिर से मिलेगी। वर्षों से जमीन पर खड़े एमआई-26 हेलीकॉप्टरों को फिर से उड़ान भरने लायक बनाया जा रहा है। एमआई-26 हेलीकॉप्टर अपने जमाने का महाबली रहा है। सेना इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सैन्य टुकड़ियों और साजो-सामान को ढोने के लिए किया करती थी। लेकिन पुराना पड़ जाने के कारण ये हेलीकॉप्टर्स वर्षों से ग्राउंडेड हैं।
सरकार और सेना ने फैसला किया है कि अब ग्राउंडेड एमआई-26 हेलीकॉप्टरों की बड़े पैमाने पर रिपेयरिंग की जाएगी। चंडीगढ़ के नंबर 3 बेस रिपेयर डिपो (बीआरडी) में रिपेयरिंग का काम चलेगा और इसमें रूस के इंजीनियर मदद करेंगे। पहले तय हुआ था कि इन हेलीकॉप्टरों को मेंटनेंस के लिए रूस भेजा जाएगा, लेकिन कागजी प्रक्रिया में इतनी देर हो गई कि हेलिकॉप्टर तकनीक के नजरिए से रिटायर हो गए। इस कारण इन्हें ग्राउंड करना पड़ा।
अब वायुसेना ने रूसी इंजीनियरों को ही भारत बुलाकर हेलीकॉप्टरों को चमकाने का फैसला किया है। हेलीकॉप्टरों में लगे उपकरण रूस की कंपनी के हैं और उसी कंपनी के इंजीनियरों को भारत बुलाया गया है। हेलीकॉप्टरों का पुर्जा-पुर्जा खोला जा रहा है। इंजीनियर उसके एक-एक पुर्जे को परखकर तय करेंगे कि किसे दुबारा लगाना है और किसे बदल देना है। काम पूरा होने पर हेलीकॉप्टर एक दशक तक फिर से काम आ सकेंगे।
उम्मीद की जा रही है कि कायाकल्प के बाद पहला हेलीकॉप्टर का ट्रायल 2025 के मध्य तक संभव हो सकेगा। ट्रायल में सब ठीक रहा तो वायुसेना को 2026 की शुरुआत से हेलिकॉप्टर सौंपे जाने लगेंगे। संचालन में पूरी तरह आ जाने के बाद वायुसेना को दूर-दराज के और बेहद दुरूह इलाकों में भारी से भारी वजन के साजो-सामान या सैनिकों के जत्थे को भेजने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
वायुसेना में महाबली की वापसी खासकर चीन के साथ 2020 से जारी गतिरोध के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण होगी। बीते चार वर्षों से पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। भारतीय सेना को साजो-सामान और उपकरणों की कोई कमी नहीं हो, इस दिशा में तेजी से प्रयास हो रहे हैं। थल, जल और वायु, तीनों सेनाओं के लिए न केवल सैन्य साजो-सामान की खरीद हो रही है बल्कि देश में भी एक से बढ़कर एक निर्माण हो रहे हैं। सेना नए उपकरणों के साथ-साथ पुराने सामानों का भी कायाकल्प किया जा रहा है। एमआई-26 हेलीकॉप्टरों की रिपेयरिंग से भारत एयरक्राफ्ट मेंटनेस और रिपेयरिंग के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़ा सकेगा।