नई दिल्ली। साइबर ठगों ने लड़ाकू विमान बनाने वाली हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से 55 लाख रुपये ठग लिए। दरअसल एचएएल ने अमेरिका की एक कंपनी से लड़ाकू विमान के पार्ट्स खरीदने का सौदा किया था। ऑर्डर के संबंध में साइबर ठगों ने कंपनी से मिलती-जुलती ई-मेल आईडी से डिटेल भेजकर अपने अकाउंट में पेमेंट करा लिया। पेमेंट के बाद भी ऑर्डर नहीं मिलने पर ठगी की जानकारी हुई। इसके बाद एचएएल के अपर महाप्रबंधक ने ठगों के खिलाफ साइबर थाने में रिपोर्ट कराई है।
साइबर थाने में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार कानपुर की एचएएल रक्षा मंत्रालय की कंपनी है। यहां पर लड़ाकू विमान बनाए जाते हैं। उनका मेंटीनेंस और ओवरहॉलिंग की जाती है। इस वजह से कंपनी विदेश से भी पार्ट्स खरीदती है। एचएएल ने विमान से संबंधित पार्ट्स खरीदने के लिए अमेरिका की कंपनी (एमएस पी.एस. इंजीनियरिंग इनकॉरपोरेटेड, यूएसए) से बातचीत चल रही थी।
एचएएल ने अमेरिकी कंपनी से तीन पार्ट्स के लिए बीते 3 मई 2024 को कोटेशन मांगा। इस कंपनी ने उसी दिन कोटेशन भेज दिया था। एचएएल ने अपना ऑर्डर संबंधित कंपनी को ई-मेल (gledbetter@ps-engineering.com) के जरिए नोट करा दिया था। शातिर ठगों को एचएएल की इस खरीददारी की जानकारी हो गई थी। इसका फायदा उठाते हुए शातिर ठगों ने कंपनी से मिलती जुलती ई-मेल आईडी (jlane@ps-enginering.com) बनाई और इसी ई-मेल से एचएएल के अफसरों से बात करना शुरू कर दिया।
एचएएल से ऑर्डर के नाम पर अपनी फर्जी ई-मेल जिसमें सिर्फ एक ई शब्द कम था। उसके जरिए साइबर ठगों ने अपने खाते की डिटेल भेजकर एचएएल से यूएसडी 63405 यानी भारतीय करेंसी में करीब 55 लाख रुपये अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए। पेमेंट कराने के बाद भी ऑर्डर नहीं आया तब कंपनी ने जांच-पड़ताल शुरू की। इसमें चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि जिस ई-मेल पर बात कर रहे थे वो अमेरिकी कंपनी की थी ही नहीं, बल्कि ठगों ने मिलती-जुलती ई-मेल आइडी बनाई और एचएएल से 55 लाख की ठगी की। साइबर थाना प्रभारी सुनील वर्मा ने बताया कि एचएएल के अपर महाप्रबंधक की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। इसका खुलासा करने को आईआईटी कानपुर के एक्सपर्ट की भी मदद ली जाएगी। जल्द ही ठगों को गिरफ्तार किया जाएगा।
एचएएल की ई-मेल हैक होने की आशंका
ठगी के बाद एचएएल के अफसरों को आशंका है कि उनकी ई-मेल भी साइबर ठगों ने हैक कर रखा है। इसी वजह से ठगों को उनके मेल पर होने वाली एक्टिविटी का पता चल गया। इसी जानकारी का फायदा उठाकर मिलती-जुलती ई-मेल के जरिए अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए।