नई दिल्ली: कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ पर निशाना साधा है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जगदीप धनखड़ पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि सदन में जगदीप धनखड़ का व्यवहार विपक्षी सदस्यों के प्रति पक्षपातपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमें मजबूरी में अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा।
विपक्षी नेताओं को बोलने से रोका जाता- खड़गे
मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “विपक्षी नेताओं को बोलने से रोका जाता है। सभापति के चलते सदन में गतिरोध बना हुआ है। उनके आचरण से देश की गरिमा को नुकसान है। हमारी सभापति से निजी दुश्मनी नहीं है। आज सदन में राजनीति ज्यादा हो रही है। सभापति को निष्पक्ष होना चाहिए। धनखड़ सरकार के प्रवक्ता बन गए हैं।”
खड़गे ने कहा कि सभापति का काम नियम से सदन को संचालित करने का होता है और वो राजनीति से परे होते हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में सभापति कभी खुद को आरएसएस का एकलव्य बताते हैं तो कभी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे होते हैं। खड़गे ने कहा, “सदन में बहुत ही सीनियर बुद्धिजीवी, वरिष्ठ पत्रकार, 30-40 सालों का राजनीतिक इतिहास वाले लोग बैठे हैं। लेकिन सभापति सबको हेडमास्टर की तरह से लेक्चर देते हैं।”
क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 67?
हालांकि धनखड़ को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने का जो नोटिस विपक्षी दलों ने दिया है, उस पर आगे की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 67 की व्याख्या पर काफी हद तक निर्भर करती है। देश के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार है कि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ यह कदम उठाया गया है। संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस नोटिस पर विचार किया जाए या नहीं, इसमें सरकार की भी प्रमुख भूमिका हो सकती है।
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया है, “उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के एक प्रस्ताव (जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो) के जरिये उनके पद से हटाया जा सकता है। लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कम से कम 14 दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है।”